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________________ षोडश संस्कार आचार दिनकर 26 / / सातवाँ उदय // शुचिकर्म - संस्कार अपने-अपने वर्ण के अनुसार निर्धारित दिनों के व्यतीत होने पर शुचिकर्म - संस्कार करना चाहिए । विप्रों में, अर्थात् ब्राह्मणों में दसवें दिन, क्षत्रियों में बारहवें दिन शुद्धि करने का विधान है। वैश्य सोलह दिनों में और शूद्र एक महीने में शुद्धि, अर्थात् शुचिकर्म करे । कारू (शिल्पियों) को सूतक नहीं होता, अतः उनको शुद्धि भी नहीं करना होती है। इस सम्बन्ध में गृहस्थ गुरू उनके कुल - आचार को ही प्रमाण मानते है, इसलिए गृहस्थ गुरु अपने-अपने वर्ण एवं कुल के अनुसार दिन व्यतीत होने पर ही उन्हें शुचिकर्म करवाएँ। सोलह पुरूष, अर्थात् सोलह पीढ़ियों पूर्व तक के वंशजो का आह्वान करें, क्योंकि सोलह पीढ़ियों तक सूतक का ग्रहण किया जाता है । जैसा कि कहा गया है। "बुद्धिमान सोलह पुरखों, अर्थात् सोलह पीढ़ियों पूर्व तक सूतक की गणना करते हैं और लाखों नृ युगों तक सगोत्र में विवाह की अनुज्ञा नहीं देते हैं।" उसके बाद बुलाए गए सभी सगोत्री जनों को पूर्ण स्नान एवं वस्त्र-प्रक्षालन करने के लिए कहें। स्नान करके शुद्ध वस्त्रों को धारण करके वे सब गृहस्थ गुरू (विधिकारक ) को साक्षी बनाकर विविध प्रकार से भगवान की पूजा-अर्चना करें। उसके बाद बालक के माता-पिता पंचगव्य (गाय के दूध, दही, घी, गोमूत्र एवं गोबर) से कुल्ला कर एवं स्नान कर शिशु सहित अपने नाखून काटें। फिर ग्रन्थि से बंधे हुए दंपत्ति जिनप्रतिमा को नमस्कार करें। सधवा स्त्रियाँ मंगल गीत गाते हुए एवं वाजिंत्र बजाते हुए सभी मंदिरो में पूजा का नैवेद्य चढ़ाए । साधु को यथाशक्ति चतुर्विध आहार, वस्त्र, पात्र आदि का दान दें। संस्कार कराने वाले गुरू को वस्त्र, ताम्बूल, आभूषण, मुद्रा (द्रव्य) आदि का दान करें । Jain Education International इसी प्रकार जन्म - संस्कार, चन्द्र-सूर्य के दर्शन कराने वाले, क्षीराशन एवं षष्ठी - संस्कार कराने वाले गुरू को भी उसी दिन दान दें। सभी गोत्रजन, स्वजन एवं मित्र वर्ग को यथाशक्ति भोजन एवं ताम्बूल प्रदान करें तथा गुरू उनके कुल - आचार के अनुसार शिशु को पंचगव्य, जिनस्नात्रजल, सर्वोषधि- जल एवं तीर्थ-जल से स्नान करवाकर www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.001690
Book TitleJain Gruhastha ki Shodashsanskar Vidhi
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2005
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Culture, & Vidhi
File Size12 MB
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