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________________ षोडश संस्कार आचार दिनकर 25 उसके बाद मातृ - स्थापन के अग्र भूमि-भाग पर चन्दन का लेप करके अम्बारूप षष्ठी माता की स्थापना करे। उसकी दही, चन्दन, अक्षत, दूब आदि से पूजा करे। उसके बाद गुरू हाथ में पुष्प लेकर निम्न मंत्रोच्चार करते हुए अन्य माताओं की तरह षष्ठी माता की भी पूजा करे । गुरु हाथ में पुष्प लिए हुए यह मंत्र बोले "ऊँ ऐं ह्रीँ षष्ठि आम्रवनासीने कंदबवनविहारे पुत्रद्वययुते नरवाहने श्यामांगि इह आगच्छ-आगच्छ स्वाहा । । " उसके बाद शिशु की माता सहित कुल वृद्धाएँ, सधवा स्त्रियाँ आदि गीत गाते हुए एवं वाद्ययन्त्र बजाते हुए षष्ठी - रात्रि का जागरण करें। उसके बाद प्रातः --- - "भगवति पुनरागमनाय स्वाहा " इस प्रकार प्रत्येक माता, अर्थात् देवी का नाम लेकर, गृहस्थ गुरू आठ माताओं एवं षष्ठी माता का विसर्जन करे। उसके बाद गृहस्थ गुरू शिशु को पंचपरमेष्ठी मंत्र से अभिमंत्रित शुद्ध किए हुए जल से अभिसिंचित करे और निम्न वेद-मंत्र से आशीर्वाद दे "ॐ अर्ह जीवोऽसि, अनादिरसि, अनादिकर्मभागसि, यत्त्वया पूर्वं प्रकृ तिस्थितिरसप्रदेशैराश्रववृत्त्या कर्मबद्धं तद्बन्धोदयोदीरणासत्ताभिः प्रतिभुङ्क्ष्व, माशुभकर्मोदयफलभुक्तेरूच्छेकं दध्याः, नचाशुभकर्मफलभुक्त्या विषादमाचरे: तवास्तु संवरवृत्त्या कर्म निर्जरा अर्ह ऊँ ।।” सूतक में दक्षिणा नहीं दी जाती है। आचार्य वर्धमानसूरि के अनुसार चन्दन, दही, दूब, अक्षत, कुंकुम, खड़िया एवं हिंगुलादि पूजा के उपकरण, नैवेद्य, सधवा नारियाँ, कुशाघास, भूमिलेपन तथा षष्ठी - जागरण हेतु अपेक्षित अन्य सब वस्तुएँ, इस संस्कार हेतु आवश्यक है । Jain Education International इस प्रकार वर्धमानसूरि प्रतिपादित आचारदिनकर में गृहिधर्म का षष्ठी - जागरण- संस्कार नामक यह छठा उदय समाप्त होता है । -00 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001690
Book TitleJain Gruhastha ki Shodashsanskar Vidhi
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2005
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Culture, & Vidhi
File Size12 MB
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