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षोडश संस्कार
आचार दिनकर - 22 // पाँचवाँ उदय // क्षीराशन-संस्कार की विधि
जन्म के पश्चात् तीन दिन होने पर चन्द्र-सूर्य दर्शन के दिन ही शिशु को दूध का आहार कराते हैं। उसके लिए पूर्व में बताए गए वेश धारण करने वाला गृहस्थ गुरू सर्वप्रथम अमृतमंत्र द्वारा 108 बार अभिमंत्रित तीर्थ जल से शिशु की माता के दोनों स्तनों को सिंचित करे, तत्पश्चात् माता गोद (अंक) में स्थित शिशु की नासिका को स्तन से लगाकर स्तनपान कराए। (अमृतमंत्र अन्त में दिया गया है।)
स्तनपान करते हुए शिशु को गृहस्थ गुरू निम्न वेदमंत्र से आशीर्वाद दे -
__ "ऊँ अर्ह जीवोऽसि आत्मासि, पुरूषोऽसि, शब्दज्ञोऽसि, रूपज्ञोऽसि, रसज्ञोऽसि, गन्धज्ञोऽसि, स्पर्शज्ञोऽसि, सदाहारोऽसि, कृताहारोऽसि, अभ्यस्ताहारोऽसि, कावलिकाहारोऽसि, लोमाहारोऽसि, औदारिकशरीरोऽसि, अनेनाहारेण तवांगवर्धतां, तेजोवर्द्धता, पाटवं वर्द्धतां, सौष्ठवं वर्द्धतां, पूर्णायुभव, अर्ह ऊँ।।" इस मंत्र से तीन बार आशीर्वाद दे। अमृतमंत्र इस प्रकार है
"ॐ अमृते अमृतोद्भवे अमृतवर्षिणि अमृतं स्रावय-स्रावय स्वाहा।।"
इस प्रकार वर्धमानसूरि द्वारा प्रतिपादित आचार-दिनकर में गृहिधर्म का क्षीराशन- संस्कार नामक यह पंचम उदय समाप्त होता है।
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