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सि. सुधाकलास. मदनामनोऽसि
षोडश संस्कार
आचार दिनकर - 21 "ऊँ अहं चन्द्रोऽसि, निशाकरोऽसि, सुधाकरोऽसि, चन्द्रमाऽसि, ग्रहपतिरसि, नक्षत्रपतिरसि, कौमुदीपतिरसि, निशापतिरसि, मदनमित्रमसि, जगज्जीवनमसि, जैवातृकोऽसि, क्षीरसागरोद्भवोऽसि, श्वेतवाहनोऽसि, राजाऽसि, राजराजोऽसि, औषधीगर्भोऽसि, वंद्योऽसि, पूज्योऽसि, नमस्ते भगवन् ! अस्य कुलस्य ऋद्धिं कुरू, वृद्धिं कुरू, तुष्टिं कुरू, पुष्टिं कुरू, जयं कुरू, विजयं कुरू, भद्रं कुरू, प्रमोदं कुरू, श्री शशांकाय नमः अर्ह ॐ।।"
ऐसा बोलकर गुरू शिशुसहित माता को चन्द्र का दर्शन करवाकर बैठें और वह माता पुत्र सहित, गुरू को नमस्कार करें। गुरू भी इस प्रकार से आशीर्वाद दे - "समस्त औषधियों से मिश्रित किरण-समूह वाला, समस्त आपदाओं का नाश करने में प्रवीण तथा निरन्तर प्रसन्न रहनेवाला चन्द्रमा तुम्हारे समस्त वंश की वृद्धि करे।" ।
सूतक में दक्षिणा नहीं दी जाती है। उसके बाद गुरू जिन-प्रतिमा और चन्द्रप्रतिमा का विसर्जन करे।
__ यदि उस रात्रि में चतुर्दशी, अमावस्या होने के कारण अथवा आकाश बादलों से ढका होने के कारण चन्द्र-दर्शन न हो पाए, तो भी पूजन उसी संध्या में करे, किन्तु चन्द्र दर्शन किसी अन्य रात्रि को हो सकता है। सूर्य एवं चन्द्रदर्शन-विधि यहाँ पूर्ण होती है।
- सूर्य-चन्द्र की मूर्ति उसकी पूजा-सामग्री तथा सूर्य एवं चन्द्र का दर्शन इस संस्कार के लिए परम आवश्यक है।
इस प्रकार वर्धमानसूरि प्रतिपादित आचारदिनकर में गृहिधर्म का “सूर्य-चन्द्र दर्शन-संस्कार" नामक यह चतुर्थ संस्कार समाप्त होता है।
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