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षोडश संस्कार
आचार दिनकर
करने योग्य विधान का वर्णन क्रमशः आगे इसी ग्रन्थ के शान्तिककर्म नामक तेंतीसवें उदय में है।
इस प्रकार वर्द्धमानसूरि प्रतिपादित आचारदिनकर में गृहिधर्म का जन्म - संस्कार नामक यह तृतीय उदय समाप्त होता है I
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