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षोडश संस्कार
आचार दिनकर - 18 जच्चा अर्थात् जिसने हाल ही में प्रसव किया है, का सूतिकर्म करने के लिए गुरू उस प्रसूता के कुल की वृद्धाओं एवं दाइओं को निर्देश दे तथा अन्य गृह में स्थित गुरू बालक के स्नानार्थ जल अभिमंत्रित करके दे। जल को अभिमंत्रित करने का मंत्र इस प्रकार है --
"ऊँ अर्ह नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः" "क्षीरोदनीरैः किल जन्मकाले यैर्मेरूश्रृंगे स्नपितो जिनेन्द्रः, स्नानोदकं तस्य भवत्विदं च शिशोर्महामंगल पुण्य वृद्धयै।" ।
गुरू इस मंत्र द्वारा सात बार जल को अभिमंत्रित करे तथा उस जल से कुलवृद्धाएँ बालक को स्नान कराए। नाल का छेदन सब अपने कुलाचार के अनुरूप करें। उसके बाद गुरू अपने स्थान पर रहकर चन्दन, रक्तचन्दन, बेल नामक वृक्ष की लकड़ी आदि जलाकर भस्म बनाए। उस भस्म में श्वेत सरसों और नमक को मिलाकर एक पोटली में बांध दे। रक्षा के लिए मूलमंत्र इस प्रकार है -
___"ॐ ह्रीं श्रीं अंबे जगदंबे शुभे शुभंकरे अमुं बालं भूतेभ्यो रक्ष रक्ष, ग्रहेभ्यो रक्ष रक्ष, पिशाचेभ्यो रक्ष रक्ष, वेतालेभ्यो रक्ष रक्ष, शाकिनीभ्यो रक्ष रक्ष, गगनदेवीभ्यो रक्ष रक्ष, दुष्टेभ्यो रक्ष रक्ष, शत्रुभ्यो रक्ष रक्ष, कार्मणेभ्यो रक्ष रक्ष, दृष्टिदोषेभ्यो रक्ष रक्ष, जयं कुरू कुरू, विजयं कुरू कुरू, तुष्टिं कुरू कुरू, पुष्टिं कुरू कुरू, कुलवृद्धिं कुरू कुरू ॐ ह्रीं ॐ भगवति श्री अंबिके नमः ।"
इस मंत्र से सात बार अभिमंत्रित करके लोहखण्ड तथा वरूणमूल, रक्तचन्दन, कौड़ी आदि से युक्त रक्षा-पोटली को काले धागे से बांधकर कुल-वृद्धाओ से शिशु के हाथ में बधवाएँ।
विचक्षण व्यक्ति जन्म संस्कार हेतु प्रसूतिगृह के समीप में एकांत-गृह तथा घटीपत्र, चन्दन, रक्तचन्दन, सफेद सरसों, नमक, रेशमी वस्त्र, काला धागा, कपर्दिका (कोड़ी), मंगलगीत, रक्षा-पोटली के लिए लोहा और वस्त्र, दक्षिणा के लिए धन, स्वस्तिक, कुल वृद्धाएँ और सर्व जलाशयों का जल आदि वस्तुएँ लेकर रखें। यह जन्म–संस्कार विधि कही गई है।
यदि कदाचित् शिशु का जन्म आश्लेषा, ज्येष्ठा, मूल नक्षत्र में गण्डान्त या भद्रा नक्षत्र में हो, तो वह उसके पिता तथा उसके कुल के दुःख, दारिद्र, शोक एवं मरण का कारण बनता है, इसलिए पिता व कुल के ज्येष्ठ शान्तिक विधान किए बिना शिशु का मुख न देखें। उसके लिए
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