SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षोडश संस्कार आचार दिनकर - 16 उसके पश्चात् जिन-प्रतिमा को सहस्त्रमूली स्नान कराए। फिर उसे समस्त तीर्थ जल से स्नान कराये। तत्पश्चात् सम्पूर्ण स्नात्र जल को स्वर्ण, चांदी, ताम्र आदि के पात्र में संचित करें। शुभ आसन पर सुखपूर्वक बैठी हुई तथा पति, देवर आदि जिसके साक्षी हैं, ऐसी कुलीना गर्भिणी को गुरू दाएँ हाथ में कुश लेकर कुशाग्र पर स्थित बूंदों से स्नात्र-जल के द्वारा (गर्भिणी स्त्री के) सिर, स्तन एवं उदर को अभिसिंचित करते हुए यह वेदमंत्र बोले :__"ऊँ अर्ह नमस्तीर्थकरनामकर्मप्रतिबन्धसंप्राप्तसुरासुरेन्द्रपूजायार्हते आत्मने त्वमात्मायुः कर्मबन्धप्राप्यं तं मनुष्य जन्मगर्भावासमवाप्तोऽसि, तद्भवजन्मजरामरणगर्भवासविच्छित्तये प्राप्तार्हद्धर्मोऽर्हद्भक्तः सम्यक्त्वनिश्चलः कुलभूषणः सुखेन तव जन्मास्तु। भवतु तव त्वन्मातापित्रोः कुलस्याभ्युदयः, ततः शान्तिः तुष्टिवृद्धिः ऋद्धिः कान्तिः सनातनी अर्ह ऊँ।।" इस वेदमंत्र को आठ बार बोलते हुए गर्भिणी को अभिसिंचित करे। उसके बाद गर्भवती स्त्री आसन से उठकर सर्वजाति के आठफल तथा सोने एवं चांदी की आठ मुद्राएँ प्रणाम करके जिन प्रतिमा के सम्मुख चढ़ाए। उसके बाद विधि कराने वाले गृहस्थ गुरू के पैरों में नमस्कार करके दो वस्त्र (वस्त्रो का जोड़ा) सोने, चांदी की आठ मुद्राएँ, आठ सुपारी पान सहित गृहस्थ गुरू को दे। उसके पश्चात् उपाश्रय में जाकर साधुओं को वन्दन करे। यथाशक्ति शुद्ध अन्न, वस्त्र, पात्र का दान दे। फिर अपने से आयुष्य में बड़े लोगों को नमस्कार करे। इस प्रकार यह पुंसवन-संस्कार विधि बताई गई है। इसके बाद अपने कुलाचार के अनुसार कुल देवता आदि की पूजा करे। आचार्य वर्धमानसूरि के अनुसार इस संस्कार में निम्न वस्तुएँ आवश्यक है - पंचामृत, स्नात्र की वस्तुएँ (स्नान के साधन), स्त्री के लिए नए वस्त्र, इसके अतिरिक्त नए दो वस्त्र, सोने एवं चांदी की आठ-आठ मुद्राएँ (कुल 16 मुद्राएँ), उत्तम जाति के सोलह फल, कुश, ताम्बूल, गंध, पुष्प, नैवेद्य तथा सधवा स्त्रियों द्वारा मंगलगीत का गान - ये सभी बातें पुंसवन-संस्कार के कार्य को उत्तम रीति से संपन्न करने के लिए परमावश्यक हैं। इस प्रकार वर्धमानसूरि प्रतिपादित आचारदिनकर में गृहिधर्म का पुंसवन-संस्कार नामक यह द्वितीय उदय समाप्त होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001690
Book TitleJain Gruhastha ki Shodashsanskar Vidhi
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2005
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Culture, & Vidhi
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy