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________________ षोडश संस्कार आचार दिनकर - 11 जय जय परे परापरे जये अजिते अपराजिते जयावहे सर्वसंघस्य भद्रकल्याणमंगलप्रदे, साधूनां शिवतुष्टिपुष्टिप्रदे, जय जय भव्यानां कृतसिद्धे सत्त्वानां निर्वृत्तिनिर्वाणजननि अभयप्रदे स्वस्तिप्रदे भविकानां जन्तूनां, शुभप्रदानाय नित्योद्यते सम्यग्दृष्टिनां, धृतिरतिमतिबुद्धिप्रदे जिनशासनरतानां शान्तिप्रणतानां जनानां श्रीसंपत्कीर्तियशोवर्द्धिनि, सलिलात् रक्ष रक्ष, अनिलात् रक्ष रक्ष, विषधरेभ्यो रक्ष रक्ष, राक्षसेभ्यो रक्ष रक्ष, रिपुगणेभ्यो रक्ष रक्ष, मारीभ्यो रक्ष रक्ष, चौरेभ्यो रक्ष रक्ष, ईतिभ्यो रक्ष रक्ष श्वापदेभ्यो रक्ष रक्ष, शिवं कुरू कुरू, शान्तिं कुरू कुरू, तुष्टिं कुरू कुरू, पुष्टिं कुरू कुरू, स्वस्तिं कुरू कुरू, भगवती, गुणवती, जनानां शिव शान्तितुष्टि पुष्टि स्वस्ति कुरू कुरू। ॐ नमो-नमो हूं ह्रः यः क्षः ह्रीं फट् फट् स्वाहा। अथवा ऊँ नमो भगवतेऽर्हते शान्ति स्वामिने, सकलातिशेषकमहासंपत्समन्विताय, त्रैलोक्यपूजिताय, नमः शान्तिदेवाय, सर्वामरसमूहस्वा- मिसंपूजिताय, भुवनपालनोद्यताय, सर्वदुरितविनाशनाय, सर्वाशिवप्रशमनाय, सर्वदुष्टग्रहभूतपिशाचमारिडाकिनीप्रमथनाय, नमो भगवति विजये, अजिते, अपराजिते, जयन्ति जयावहे सर्वसंघस्य भद्रकल्याणमंगलप्रदे साधूनां शिवशान्तितुष्टिपुष्टिस्वस्तिप्रदे भव्यानां सिद्धिवृद्धिनिर्वृतिनिर्वाणजननि, सत्त्वानामभयप्रदाननिरते, भक्तानां शुभावहे, सम्यग्दृष्टिनां धृतिरतिमतिबुद्धिप्रदानोद्यते, जिनशासननिरतानां श्रीसंपत्कीर्तियशोवर्द्धिनि, रोगजलज्वलनविषविषधरदुष्टज्वरव्यन्तरराक्षसरिपुमारिचौरेतिश्वापदोपसर्गादिभयेभ्यो रक्ष रक्ष, शिवं कुरू कुरू शान्तिं कुरू कुरू तुष्टिं कुरू कुरू पुष्टिं कुरू कुरू स्वस्तिं कुरू कुरू भगवति श्री शान्तितुष्टिपुष्टिस्वस्ति कुरू कुरू ऊँ नमो नमः हूं ह्रः यः क्षः ह्रीं फट् स्वाहा। इस मंत्र द्वारा या पूर्व में कहे गए मंत्र द्वारा वह गृहस्थ गुरू सहस्रमूलिका से युक्त सर्व जलाशयों के जल को सात बार अभिमंत्रित कर पुत्रवती सधवा स्त्री के हाथों से मंगल गीत गाते हुए गर्भवती स्त्री को स्नान करवाए। उसके बाद गर्भवती स्त्री को सुगंधयुक्त लेप लगवाकर, अनुकूल (उपयुक्त) वस्त्र पहनवाकर, उसकी आर्थिक स्थिति के अनुरूप आभूषणों को धारण करवाकर पति के साथ वस्त्रांचल ग्रन्थि-बन्धन करवाते हुए पति के वाम पार्श्व में शुभ आसन पर स्वस्तिक करके बैठाए । ग्रन्थि योजनमंत्र इस प्रकार है : - "ऊँ अर्ह, स्वस्ति संसारसंबन्धबद्धयोः पतिभार्ययोः। युवयोरवियोगोऽस्तु भववासान्तमाशिषा।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001690
Book TitleJain Gruhastha ki Shodashsanskar Vidhi
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2005
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Culture, & Vidhi
File Size12 MB
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