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षोडश संस्कार
आचार दिनकर कंकण बांधा हुआ हो, रात्रि में जिसने ब्रह्मचर्य का पालन किया हो तथा उस दिन उपवास, आयम्बिल, निवी (निर्विकृति ) एकासना आदि का प्रत्याख्यान किया हो - ऐसा गृहस्थ गुरू ही संस्कार विधि करवाने के योग्य होता है।
जैसा कहा गया है
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"जो शान्त हो, जिसने इन्द्रियों को जीत लिया हो, मौनी हो, सम्यक्त्व का पूर्ण पालन करता हो, मुनिजनों की आज्ञा के अनुरूप कार्य करने वाला हो, दुराग्रह से (परवाद से ) रहित हो, क्रोध, लोभ व माया को जीता हुआ हो, कुलीन हो, सर्वशास्त्रों का ज्ञाता हो, सबके अनुकूल व्यवहार करने वाला हो, कृपालु हो, राजा और रंक को समदृष्टि से देखने वाला हो, अपने आचार-मार्ग को प्राणनाश का संकट आने पर भी नहीं त्यागे, अखण्डित शरीरवाला हो, सरल हो, सदैव सद्गुरू की उपासना करने वाला हो, विनीत हो, बुद्धिमान हो, क्षमाशील कृतज्ञ हो, अन्तर और बाह्य- दोनो ही रूप से पवित्र हो ऐसा गृहस्थ गुरू गृहस्थों के संस्कार करवाने के योग्य होता है ।
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इस प्रकार का गृहस्थ गुरू गर्भाधान कर्म को करने से पहले गर्भवती स्त्री के पति की अनुमति प्राप्त करे । तत्पश्चात् उस गर्भवती स्त्री का वह पति नख से शिखा पर्यन्त पूर्ण स्नान कर शुद्ध वस्त्रों को धारण कर निज वर्ण के अनुसार उपवीत (त्रिसूत्र ), उत्तरीय एवं उत्तरासन धारण करके सर्वप्रथम अर्हत् परमात्मा की शास्त्रानुसार बृहत्स्नात्र - विधि करे । उस स्नात्र के जल को पवित्र पात्र (बर्तन) में स्थापित करे, अर्थात् रखे । उसके बाद शास्त्र की विधि के अनुसार जिन प्रतिमा की गन्ध, धूप, दीप, नैवेद्य, गीत वाजिंत्र आदि से पूजा करे । पूजा के अन्त में गृहस्थ गुरु सधवा स्त्रियों के हाथों से गर्भवती स्त्री को स्नात्र जल से सिंचित कराए । उसके बाद सभी जलाशयों के पानी को एकत्रित कर उसमें सहस्रमूलचूर्ण को शान्तिदेवी के मंत्र द्वारा अभिमंत्रित करके डालें या अन्य युक्त स्तोत्र द्वारा अभिमंत्रित करें। शान्तिदेवी का मंत्र इस प्रकार है
"ॐ नमो निश्चितवचसे भगवते पूजामर्हते जयवते यशस्विने, यतिस्वामिने सकलमहासंपत्तिसमन्विताय त्रैलोक्यपूजिताय सर्वासुरामरस्वामि संपूजिताय अजिताय भुवनजनपालनोद्यताय सर्वदुरितौघनाशनकराय सर्वाशिवप्रशमनाय दुष्टग्रहभूति पिशाचशाकिनीप्रमथनाय यस्येतिनाममंत्रस्मरणतुष्टा भगवती तत्पदभक्ता विजयादेवी । ॐ ह्रीं नमस्ते भगवति विजये,
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