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षोडश संस्कार
आचार दिनकर - 9 // पहला उदय //
गर्भाधान संस्कार आचारदिनकर में कहा गया है कि व्रतारोपण को छोड़कर शेष पन्द्रह संस्कार गृहस्थों के लिए करणीय हैं। यतियों के लिए ये कर्म (संस्कार) करवाना वर्जित है।
जैसा आगम में कहा गया है -
"जो साधु जय-पराजय, ज्योतिष एवं सांसारिक कर्म करता हो तथा जो विद्या तथा मंत्र आदि का प्रयोग करता है, वह साधु विराधक होता है।"
गृहस्थों के ये पन्द्रह संस्कार किसके द्वारा किए जाने चाहिए ? इसके लिए आगम में कहा गया है -
____ "अर्हत् मंत्र से उपनीत परमार्हत्, अर्थात् जैन ब्राह्मण या क्षुल्लक जिसने इस हेतु अपने गुरू की आज्ञा प्राप्त की है, वे गृहस्थों के ये संस्कार करवाए।"
गर्भाधान-संस्कार की विधि :
गर्भाधान के पश्चात् पाँचवा मास पूर्ण होने पर गर्भाधान-विधि की क्रिया गृहस्थ गुरू के द्वारा करवाई जानी चाहिए। गर्भाधान-संस्कार, पुसंवन-संस्कार एवं जन्म-संस्कार नाम संस्कार अंत आदि संस्कार आवश्यक कर्म होने से शुभ मास, तिथि एवं दिन आदि की शुद्धि देखे बिना भी निश्चित मास दिन आदि में ये संस्कार करने चाहिए।
श्रवण, हस्त, पुनर्वसु, मूला, पुष्य और मृगशीर्ष नक्षत्र तथा रविवार, सोमवार एवं गुरूवार पुंसवनादि कर्म के लिए शुभ कहे गए हैं।
गर्भस्थापन के पाँचवे मास में शुभ तिथि, वार, नक्षत्र आदि तथा पति के चंद्रबल आदि को देखकर गर्भाधान संस्कार किया जाता है। मुनिजनों से आज्ञा प्राप्त गृहस्थ गुरू (विधिकारक) या क्षुल्लक गृहस्थों की संस्कार-विधि करवाने के योग्य माना जाता है। गृहस्थों के संस्कार करवाने वाला वह गृहस्थ गुरू कैसा हो ? इस सम्बन्ध में कहा है कि जिसने स्नान करके धुले हुए निर्मल वस्त्र, जिनउपवीत और उत्तरासंग को धारण किया हो, जिसका जूड़ा कसा हुआ हो, जो गले में पंचकक्ष या पंचरूद्राक्ष धारण किये हुए हो और ललाट पर चन्दन का तिलक लगाया हुआ हो, साथ ही जिसने अंगुली में सावित्रीक मंत्र से अंकित स्वर्णमुद्रिका पहन रखी हो तथा हाथ में दर्भयुक्त कौसुंभ-सूत्र का पंचग्रन्थि सहित
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