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षोडश संस्कार
आचार दिनकर
परमात्मा की स्तुति की व्याख्या तथा अन्य स्तुति स्तोत्रों की व्याख्या की गई है। इसी प्रकार इसमें वन्दन आदि की व्याख्या, आलोचना आदि में क्षमापना की विधि, स्थापनाचार्य एवं कालदण्ड आदि के परिमाण का भी विवचेन है ।
उनचालीसवें उदय में त्रिविध प्रकार के तप की विधि को विवेचित किया गया है।
चालीसवें उदय में पदारोपण का महत्त्व बताया गया है। इसमें व्रतियों, ब्राह्मणों और क्षत्रियों की शासन व्यवस्था का और सामन्त, मण्डलाधिकारी, मंत्री आदि की पद-स्थापना की विधि का विवेचन है साथ ही वैश्य, शूद्रादि सहायकों की पद- स्थिति का भी वर्णन है। इसके अतिरिक्त इसमें सभी वर्णों के नामों का वर्णन किया गया है
इस प्रकार इस ग्रन्थ के चालीस उदयों में विविध विषयों का निर्देश है । उदयों का वर्गीकरण इस ग्रन्थ की आवश्यकता को ध्यान में रखकर किया गया है।
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यहाँ इस ग्रन्थ में जो कुछ भी कहा गया है, वह सब अर्हत् मत का आश्रय लेकर कहा गया है। मिथ्यादृष्टियों के व्यवहार को लेशमात्र भी नहीं दिखाया गया है ।
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साधुओं द्वारा सुखपूर्वक या सरलता से समझा जा सके, यह सोचकर इस आचारशास्त्र में विद्वत्ता या ज्ञान के वैभव को प्रदर्शित नहीं किया गया है। बृहत्स्नात्र आदि में किंचित् यमक आदि का निर्देश है। इससे विद्वान यह न समझे कि यह कृति किसी मूढ़ के द्वारा लिखी गई है। हमने यहाँ जिस रूप में भी पाठ आदि और उनके उच्चारण आदि दिए हैं, वे सब सामान्यजन को बोधगम्य हो, इसे दृष्टि में रखकर ही दिए हैं न कि अपनी अल्पज्ञता के कारण ।
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इस प्रकार इस पीठिका में इस ग्रन्थ के चालीस अधिकारों की योजना प्रस्तुत की गई है। अनुष्टुप छन्दों की अपेक्षा से इस ग्रन्थ का ग्रन्थ का आकार 12500 श्लोक परिमाण है ।
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