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षोडश संस्कार
आचार दिनकर वर्णों के उपवीत-संस्कार में व्रतग्रहण की शिक्षा का तथा शूद्र के बटूकरण में उत्तरीय धारण करने का उल्लेख है ।
तेरहवें उदय में अध्ययन - विधि का उल्लेख किया गया है ।
चौदहवें उदय में प्रजापति आदि आठ प्रकार के विवाहों का विस्तार से उल्लेख है। इसके साथ ही वेदी - स्थापन, कुलकरों की पूजा एवं अग्निस्थापना-विधि, अग्निसंतर्पण - विधि एवं उत्तम अर्ध्य-विधि आदि उल्लेखित हैं। इसके अन्तर्गत लाजामोक्षण (भुना हुआ धान बिखेरना) और गणिका - विवाह की विधि भी दी गई है।
उदय में
सम्यक्त्व - आरोपण,
पन्द्रहवें द्वादशव्रतारोपण, प्रतिमा - उद्वहन का तथा उपधान एवं तपश्चर्या में मालारोपण - विधि का निर्देश है। इसी उदय में परिग्रह - परिमाण तथा गृहस्थ की दिन व रात्रि की चर्या विधि भी उल्लेखित है। अर्हत् (की) पूजा-विधि के उल्लेख में लघुस्नात्र - विधि, दिक्पाल व ग्रहों की पूजा, लघुउपधान, नंदी की स्थापना आदि की विधियों के उल्लेख हैं ।
गई है
सोलहवें उदय में मृत्युविधि के अन्तर्गत उत्तमार्थ (संलेखनाव्रत ) की आराधना, चतुःशरण (चतुःस्मरण), क्षमापना अन्त्य - संस्कार आदि के विधि-विधान गृहस्थों को लक्ष्य में रखकर बताए गए हैं।
सत्रहवें उदय में ब्रह्मचर्य व्रत धारण करने की विधि बताई गई है। अठारहवें उदय में क्षुल्लक दीक्षा की विधि का विवेचन है । उन्नीसवें उदय में गृहत्याग - विधि एवं प्रवज्या - ग्रहण की विधि दी
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बीसवें उदय में पुनः उपस्थापन एवं महाव्रतोच्चार की विधि का निर्देश है।
इक्कीसवें उदय में योगोद्वहन करने की विधि, काल -- ग्रहण की विधि, स्वाध्याय, प्रस्थापना, खमासमणा सूत्रपूर्वक वंदन की योजना - विधि, कायोत्सर्ग विधि, वंदन विधि, संघट्टा (संस्पर्श की विधि), पेयविधि, प्रतिदिन की क्रिया तथा अर्द्धवार्षिक योग (छः मासी योग ) की विधि विवेचित है । बाईसवें उदय में वाचना की विधि का वर्णन है ।
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तेईसवें उदय में वाचनाचार्य पद - प्राप्ति की विधि दी गई है। चौबीसवें उदय में उपाध्यायपद - आरोपण की विधि का वर्णन है पच्चीसवें उदय में आचार्यपद - आरोपण की विधि एवं उससे होने वाले गुण-दोषों की चर्चा है ।
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