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षोडश संस्कार
आचार दिनकर - 5 ये सोलह संस्कार गृहस्थों के लिए बताए गए हैं।
इसी प्रकार यति धर्म के भी निम्न सोलह संस्कार बताए गए हैं - ___ 1. ब्रह्मचर्य 2. क्षुल्लक 3. प्रव्रज्या 4. उपस्थापना (महाव्रतारोपण) 5. योगोद्वहन 6. वाचनाग्रहण 7. वाचनानुज्ञा (अध्यापन कार्य की अनुमति) 8. उपाध्याय पदारोहण 9. आचार्य पदारोहण 10. प्रतिमा उद्वहन 11. व्रतिनी (साध्वी) का व्रतारोपण 12. प्रवर्तिनीपद प्रदान 13. महत्तरापद प्रदान 14. दिन एवं रात्रि सम्बन्धी आचार 15. ऋतु सम्बन्धी आचार और 16. मरण-विधि
इसके अतिरिक्त 1. चैत्य एवं बिम्बादि की प्रतिष्ठा 2. शान्तिककर्म 3. पौष्टिककर्म 4. बलि-कर्म 5. प्रायश्चित-विधि 6. आवश्यक-विधि 7. त्रिविध तप-विधि और 8. पदारोपण - ये आठ क्रियाएँ गृहस्थ एवं मुनि-दोनों के लिए समान रूप से कही गई हैं। इस प्रकार 'आचारदिनकर' नामक इस ग्रन्थ में क्रमशः उपर्युक्त 40 द्वार प्रतिपादित किए गए हैं।
यहाँ प्रथम उदय (अधिकरण) में गर्भाधान नामक संस्कार की विधि बताई गई है। इसमें विधिपूर्वक शांतिदेवी के परम मंत्र से वेद की स्थापना करना चाहिए।
द्वितीय उदय में पुंसवन संस्कार की विधि कही गई है। तृतीय उदय में जातकर्म की विधि बताई गई है। चौथें उदय में सूर्य-चन्द्र के दर्शन की विधि का वर्णन है। पाँचवें उदय में क्षीर भोजन की विधि का उल्लेख है।
छठे उदय में षष्ठी जागरण और माताओं (देवियों) की पूजा का विधान बताया गया है।
सातवें उदय में शुचिकर्म का वर्णन किया गया है।
आठवें उदय में नामकरण, ग्रह, लग्नादि की पूजा एवं मण्डलपूजन की विधि बताई गई है।
नवें उदय में अन्न-प्राशन संस्कार का वर्णन है। दसवें उदय में कर्णछेदन की विधि का उल्लेख किया गया है। ग्यारहवें उदय में मुण्डन-विधि बताई गई है।
बारहवें उदय में उपनयन-संस्कार का उल्लेख है। इसमें जिन उपवीत का स्वरूप, उसकी विधि, व्रत-धारण एवं व्रतादेश का विवेचन है। साथ ही व्रत-विसर्जन एवं गोदान का उल्लेख है। इसी उदय में चारों
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