________________
षोडश संस्कार
आचार दिनकर - 113 "ऊँ पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतित्रसकाया एकद्वित्रिचतुष्पंचेन्द्रियास्तिय॑मनुष्यनारकदेव गतिगताश्चर्तुदशरज्ज्वात्मक लोकाकशनिवासिनः इह जिनार्चने कृतानुमोदनाः सन्तु, निष्पापाः सन्तु, निरपायाः सन्तु, सुखिनः सन्तु, प्राप्तकामाः सन्तु, मुक्ताः सन्तु, बोधमाप्नुवन्तु।"
इस मंत्र से दसों ही दिशाओं में गन्ध, जल, अक्षत आदि निक्षेपित करे फिर ऐसी कामना करे -
"अखिल विश्व का कल्याण हो, सभी प्राणी परोपकार में तत्पर बनें, व्याधि, दुःख, दौर्मनस्य आदि दोष नष्ट हों और सर्व जगत् सुखी हो, सभी निरोग (स्वस्थ्य) हों, सभी का कल्याण हो, कोई भी दुखी न हो" - यह आर्या अनुष्टुप छन्द का पाठ है।
"ऊँ भूतधात्री पवित्रास्तु अधिवासितास्तु सुप्रोषितास्तु" -
यह कहकर जल के द्वारा पहले से लीपी गई भूमि पर जल का छिड़काव (सिंचन) करे। फिर "ऊँ स्थिराय शाश्वताय निश्चलाय पीठाय नमः"- यह मंत्र बोलकर प्रक्षालित, चंदन से लिप्त तथा स्वस्तिक से चिन्हित पूजापट्ट की स्थापना करे।
प्रतिष्ठित बिम्ब होने पर निम्न मंत्रों के द्वारा उसके भूमि-भाग पर जल, पट आदि की स्थापना करे। ___"ऊँ अत्र क्षेत्रे अत्र काले नामार्हन्तो रूपार्हन्तो द्रव्यार्हन्तो भावार्हन्तः समागताः सुस्थिताः सुनिष्ठिताः सुप्रतिष्ठाः सन्तु।" - यह अर्हत् परमात्मा की प्रतिमा की स्थापना विधि है। (इस मंत्र द्वारा अर्हत् परमात्मा की प्रतिमा को स्थापित करे।)
निश्चल बिम्ब के होने पर चरण अधिवासित करे। फिर अंजलि के अग्रभाग में पुष्प लेकर निम्न मंत्र बोले -
"ऊँ नमोऽर्हद्भ्यः सिद्धेभ्यः, तीर्णेभ्यः तारकेभ्यो बोधकेभ्यः सर्वजन्तु हितेभ्यः इहं कल्पनाबिंबे भगवन्तोऽर्हन्तः सुप्रतिष्ठिताः सन्तु।" -
यह मंत्र मौन रूप से (मन में) कहकर भगवान के चरणों पर पुष्प चढ़ाए। पुनः जलार्द्रित पुष्पों द्वारा पूजा करके कहे, यथा “स्वागतमस्तु सुस्थितिरस्तु सुप्रतिष्ठास्तुः", फिर पुष्प अभिषेक के द्वारा - "अर्ध्यमस्तु पाद्यमस्तु आचमनीयमस्तु सर्वोपचारैः पूजास्तु"- इन वचनों से पुनः जिन-प्रतिमा पर जलार्द्रित पुष्पारोपण करे, अर्थात् चढ़ाए। फिर जल ग्रहण करके निम्न मंत्र बोले -
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org