________________
षोडश संस्कार
आचार दिनकर - 114 "ॐ अर्ह वं-जीवनं तर्पणं हृद्यं प्राणदं मलनाशनम् । जलं जिनार्चनेऽत्रैव जायतां सुख हेतवे।"
यह मंत्र बोलकर जल से प्रतिमा का अभिषेक करे और स्नान कराए। फिर चन्दन, कुंकुम, कपूर, कस्तूरी आदि सुगन्धित द्रव्य हाथ में लेकर निम्न मंत्र बोले - - "ऊँ अर्ह-लं-इदं गन्धं महामोदं बृंहणं प्रीणनं सदा । जिनार्चने च सत्कर्मसंसिद्धयै जायतां मम।"
यह कहकर विविध गन्धों का प्रतिमा पर विलेपन करे। फिर पुष्प-पत्र आदि हाथ में लेकर निम्न मंत्र बोले -
___"ऊँ अहं क्षं-नानावणं महामोदं सर्वत्रिदशवल्लभम् जिनार्चनेऽत्र संसिद्धयैः पुष्पं भवतु में सदा" - यह कहकर पुष्पपूजा करे। फिर अक्षत ग्रहण करके निम्न मंत्र बोले -
"ऊँ अहं तं-प्रीणनं निर्मलं बल्यंमागल्यं सर्वसिद्धिदम्।" जीवन कार्यसंसिद्धयै भूयान्मे जिनपूजने।।"
यह मंत्र बोलकर जिन प्रतिमा के चरणों पर अक्षत चढ़ाए। फिर सुपारी, जायफल आदि, या वर्तमान ऋतु में जो फल उपलब्ध हो, उसे हाथ में लेकर निम्न मंत्र बोले -
"ऊँ अर्ह फु-जन्मफलं स्वर्गफलं पुण्यमोक्षफलं फलम् । दद्याज्जिनार्चनेऽत्रैव जिनपादाग्रसंस्थितम् ।।"
यह मंत्र बोलकर जिन प्रतिमा के चरणों के आगे फल रखकर पूजा करे। फिर धूप ग्रहण करके निम्न मंत्र बोले -
"ऊँ अर्ह रं-श्रीखण्डागरूकस्तूरीद्रुमनिर्याससंभवः । प्रीणनः सर्वदेवानां धूपोऽस्तु जिन पूजने।।"
यह मंत्र बोलकर अग्नि का धूप उत्क्षेपन करे। फिर पुष्प ग्रहण करके निम्न मंत्र बोले -
"ॐ अहं रं-पंचज्ञानमहाज्योतिर्मयोऽयं ध्वान्तघातिने। द्योतनाय प्रतिमायादीपो भूयात्सदार्हते ।।"
यह मंत्र बोलकर दीप के मध्य में पुष्प स्थापित करे। पश्चात् पुष्प ग्रहण करके निम्न मंत्र बोले -
"ऊँ अहं भगवद्भ्योऽर्हद्भ्यो जलगन्धपुष्पाक्षतफलधूपदीपैः संप्रदानमस्तु ऊँ पुण्याहं पुण्याहं प्रीयन्तां भगवन्तोऽर्हन्तस्त्रिलोकस्थिता नामाकृतिद्रव्यभावयुताः स्वाहा।"
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org