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षोडश संस्कार
आचार दिनकर पर बैठकर परमेष्ठीमंत्र का जाप करे । तत्पश्चात् कुल, धर्म, व्रत एवं श्रद्धा का विचार करके तथा स्तोत्रपाठयुक्त चैत्यवंदन करके अपने घर में, या पौषधशालादि में रहकर प्रतिक्रमणादि करे। फिर उषाकाल के समय घर में स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनकर भोग एवं मोक्ष को प्रदान करने वाले अरिहंत देव की पूजा करे। यहाँ परमात्मा - पूजा की विधि अर्हत्कल्प के कथनानुसार इस प्रकार है
"गुरू के उपदेश को प्राप्त दृढ़ सम्यक्त्वी श्रावक जूड़ा कसकर, शुद्ध वस्त्र पहनकर, उत्तरासंग को धारण करके, अपने वर्ण के अनुसार जिन उपवीत, या उत्तरीय को धारण करके तथा मुख को वस्त्र से आवृत करके एकाग्रचित्तपूर्वक निजघर में, या बृहद् चैत्य में परमात्मा की पूजा करे ।"
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पूजा के लिए सर्वप्रथम जल, पत्र, फूल, अक्षत, फल, धूप, अग्नि, दीप, गन्ध आदि को पवित्र करे । इन सबको क्रमशः अभिमंत्रित कर पवित्र करने के मंत्र इस प्रकार हैं
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"ॐ आपोऽपकाया एकेन्द्रिया जीवा निरवद्यार्हत्पूजायां निर्व्यथाः सन्तु, निरपायाः सन्तु, सद्गतयः सन्तु नमोऽस्तु संघट्टनहिंसापापमर्हदर्चने” जल अभिमंत्रित करने का मंत्र है।
यह
"ॐ वनस्पतयो वनस्पतिकाया जीवा एकेन्द्रिया निरवद्यार्हत्पूजायां निर्व्यथाः सन्तु निरपायाः सन्तु सद्गतयः सन्तु नमोऽस्तु संघट्टन हिंसापापमर्हदर्चने" यह पत्र, पुष्प, फल, धूप, चन्दन आदि अभिमंत्रित
करने का मंत्र है ।
“ऊँ अग्नयोऽग्निकाया जीवा एकेन्द्रिया निरवद्यार्हत्पूजायां निर्व्यथाः सन्तु निरपायाः सन्तु सद्गतयः सन्तु नमोऽस्तु संघट्टन हिंसापापमर्हदर्चने" यह अग्नि, दीप आदि को अभिमंत्रित करने का मंत्र है ।
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पूजा की सभी वस्तुओं को वासक्षेप से तीन-तीन बार अभिमंत्रित करे । फिर पुष्प गन्ध आदि हाथ में लेकर यह मंत्र बोले
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एकचित्तो
“ॐ त्रसरूपोऽहं संसारिजीवः सुवासन सुमेधा निरवद्यार्हदर्चने निर्व्यथो भूयासं निष्पापो भूयासुः निरूपद्रवा भूयासुः " इस मंत्र से स्वंय के मस्तक पर तिलक करे एवं पुष्पादि से स्वंय के मस्तक की पूजा करे 1
पुनः पुष्प अक्षत आदि हाथ में लेकर निम्न मंत्र बोले
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