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________________ षोडश संस्कार आचार दिनकर - 111 घातीकर्मरूप ईंधन को दग्ध करने वाले महासत्त्व, निर्मल केवलज्ञान, सर्वकर्ममल से रहित होकर शीघ्र ही सिद्ध हो जाते हैं। इसके बाद वह अच्छे वस्त्रों को धारण किए हुए, माला पहनाने वाले अपने भाई से परमात्मा की पूजा की अनुज्ञा हेतु माला मंगवाए। उस समय सूत्र में गूंथे हुए रत्नों से युक्त माला लाए। आचार्य उस पर वासक्षेप डाले। उसके बाद उसका भाई अपने हाथों से उस उपधान करने वाले श्रावक के गले में माला पहनाए। यहाँ कुछ आचार्य ऐसा कहते हैं - "वह माला पहनकर समवसरण के चारों ओर प्रदक्षिणा करता है और संघ उसके सिर पर वासक्षेप डालते हैं। फिर पाँच शब्द छोड़कर माला पहनने वाला परमात्मा के पास जाकर परिवार सहित नाचे एवं दान दे। उस दिन गुरू उसको आयंबिल, या उपवास के प्रत्याख्यान कराए। (वर्तमान में सामान्यतः उपवास कराते हैं) फिर श्रावक परमात्मा की आरती आदि करे। फिर महान् वैभवपूर्वक श्रावक-श्राविकाएँ माला पहनने वाले को उसके घर ले जाए, वह भी अपने घर जाकर अपनी शक्ति के अनुसार उन्हें वस्त्र एवं ताम्बूलादिक दे। यदि उपाश्रय (वसति) में ही नंदी की रचना की हो, तो फिर समुदाय के साथ गृहचैत्य में जाए और वह माला गृहप्रतिमा के सम्मुख रखकर छ: मास तक पूजा करे - यह गाथाएँ गुरू तीन बार बोलते हैं। फिर उसके कन्धे पर माला डालकर श्रावक वर्ग रात्रि में आरती, गीत, नृत्य आदि करे। उस दिन श्रावक आयम्बिल, उपवास आदि तप करे। यदि उपाश्रय में मालारोपण हुआ हो, तो संघ के साथ जिन-मंदिर जाए। चैत्यवंदन करके पुनः सबके साथ उपाश्रय में आकर मण्डली-पूजादि करे। उपधान और मालारोपण की यह विधि महानिशीथ आदि सिद्धान्त-ग्रन्थों के पाठकों द्वारा श्रुतसामायिक के रूप में मानी गई है। उन ग्रन्थों का तिरस्कार करने वाले अन्य लोगों द्वारा इसे स्वीकार नहीं किया गया है। उनके मत से तो प्रतिमावहन की विधि ही श्रुतसामायिक की विधि मानी जाती है। कुछ लोग रेशमी धागे की माला, सोने की माला, या मोती-माणिक्य से युक्त माला पहनाते हैं, तो कुछ लोग श्वेत पुष्पों की माला पहनाते हैं। यहाँ यह अपनी शक्ति के अनुसार करें - यह व्रतारोपण-संस्कार में श्रुतसामायिक- आरोपण की विधि है। अब प्रसंग के अनुसार श्रावक की दिनचर्या का वर्णन करते है - रात्रि में दो मुहूर्त शेष रहने पर उपासक को उठ जाना चाहिए। मूत्र एवं मल का त्याग करके विधि अनुसार शरीर शुद्धि करे। फिर उत्तम आसन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001690
Book TitleJain Gruhastha ki Shodashsanskar Vidhi
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2005
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Culture, & Vidhi
File Size12 MB
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