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षोडश संस्कार
आचार दिनकर - 109 श्रुतस्तवश्रुतस्कन्ध की वाचना के अनुज्ञापन हेतु वासक्षेप करें।" फिर गुरू अभिमंत्रित वासक्षेप करे। पुनः श्रावक खमासमणा सूत्र से वंदन करके कहे - "चैत्यवंदन कराएं।" तब वर्धमान स्तुतियों सहित चैत्यवंदन कराएं। इसमें शान्तिदेवी आदि की स्तुतियाँ पूर्ववत् करें। पुनः शक्रस्तुति (शक्रस्तव), अर्हणादिस्तोत्र भी पूर्व की भांति ही बोलें। फिर उठकर "पंचमंगल महाश्रुतस्कन्ध एवं प्रतिक्रमण श्रुतस्कन्ध भावार्थ के ज्ञान के लिए, अरिहंत परमात्मा एवं सिद्ध परमात्मा की प्रतिमा की स्थापना के लिए और अनुज्ञापन की अनुज्ञा लेने के लिए मैं कायोत्सर्ग करता हूँ, - ऐसा कहकर अन्नत्थसूत्र बोलकर कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग में चतुर्विंशतिस्तव का चिन्तन करें एवं कायोत्सर्ग पूर्ण करके तीन बार चतुर्विशतिस्तव का पाठ करें। गुरू तीन बार परमेष्ठीमंत्र पढ़कर आसन पर बैठे तथा संघ एवं परिजन सहित श्रावक को निम्न उपदेश दे :
"हे देनानुप्रिय ! आपने अपना जन्म सफल किया है। तुम आज से लेकर जीवन पर्यन्त तीनों समय एकाग्र एवं सुस्थिर चित्त से चैत्यों की वन्दना करना। क्षणभंगुर मानव शरीर का यही सार है। तुम प्रातःकाल जब तक चैत्य एवं साधुओं को विधिपूर्वक वन्दन न कर लो, तब तक जल भी मत पीना। पुनः मध्याह में नियम से वन्दना करके भोजन करना। सांयकाल पुनः नियम से वन्दना करके सोना, इत्यादि।
यहाँ गुरू महानिशीथसूत्र की बीस गाथाओं की देशना देकर त्रिसंध्या, अर्थात् तीनों समय चैत्यवंदन तथा साधुवन्दन का उपदेश दे। उसमें भी विशेष रूप से चैत्यवंदन करने की प्रतिज्ञा कराए। फिर वासक्षेप के चूर्ण को अभिमंत्रित कर उसे हाथ की मुट्ठी में संचित करके गुरू “संसार-सागर पार करने वाले बनो"- ऐसा कहकर उसके सिर पर वासक्षेप डाले। पुनः गुरू अक्षत और वास को अभिमंत्रित करे। उस समय श्रावक सुगन्ध से वासित ताजे एवं शुद्ध श्वेत पुष्पों से गूंथी गई माला को जिन-प्रतिमा के चरणों पर रखे। आचार्य खड़े होकर अभिमंत्रित वासक्षेप को परमात्मा के चरणों में डालते हैं। फिर वहाँ स्थित साधु-साध्वी को गन्ध तथा श्रावक-श्राविकाओं को अक्षत दे। तत्पश्चात् उपधान करने वाले श्रावक नमस्कारमंत्र के अनुज्ञार्थ (अनुमति हेतु) तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू आर्शिवाद देते है कि - "संसार सागर पार करने वाले बनो एवं महान् गुणों से वृद्धि करने वाले होओ", इस प्रकार कहते हुए गुरू, संघ आदि जन - "तुम्हारी सभी इच्छाएँ पूरी हो गई हैं, तुम धन्य एवं पुण्यवान् हो'
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