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________________ षोडश संस्कार आचार दिनकर - 99 वचन, काया से करने, करवाने, अन्य करने वालों की अनुमोदना करने का त्याग करता हूँ तथा मैं अपने द्वारा पूर्वकृत इन दोषो की अत्यंत निंदा करता हूँ, तत्सम्बन्धी की जा रही क्रिया का संवरण करता हूँ एवं भविष्य में उन्हें न करने हेतु प्रतिज्ञा करता हूँ। मैं अरिहंत की साक्षी से, सिद्धों की साक्षी से, साधुजनों की साक्षी से एवं आत्मसाक्षी से इन सब क्रियाओं का द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से त्याग करता हूँ। द्रव्य से इस दर्शनप्रतिमा का, क्षेत्र से सर्वत्र, काल से एक मास तक, भाव से जब तक दुष्ट ग्रहों से ग्रसित न होऊँ, जब तक छल से छला न जाऊँ, जब तक सन्निपात आदि उपद्रवों में चित्त-विक्षोभ न हो, तब तक मैं इस दर्शन-प्रतिमा का पालन करूंगा।" इसके बाद तीन प्रदक्षिणा आदि सभी क्रियाएँ पूर्ववत् करें। फिर दर्शन-प्रतिमा के स्थिरीकरणार्थ कायोत्सर्ग आदि करें। यहाँ यथाशक्ति एक मास तक आयम्बिल आदि व्रत करने की प्रतिज्ञा लें, तीनों समय (त्रिसंध्या) विधिपूर्वक देव पूजा करें तथा पार्श्वस्थ आदि को वन्दन करने का त्याग करें। सम्यक्त्व के शंका आदि पांच अतिचारों का वर्जन करें। राजाभियोग आदि छ: उपसर्गों के होने पर भी सम्यक्त्व का त्याग नहीं करूंगा, ऐसा अभिग्रह करें। यही दर्शन-प्रतिमा की विधि है। व्रत-प्रतिमा : द्वितीय व्रतप्रतिमा की विधि इस प्रकार है - दो मास तक निरपवाद रूप से पाँच अणुव्रतों के परिपालन के साथ-साथ तीन गुणव्रतों एवं चार शिक्षाव्रतों का भी पालन करें। इसमें भी नंदी, खमासमणा, प्रत्याख्यान एवं नियम-ग्रहण प्रतिज्ञा-पाठ (दण्डक) का उच्चारण आदि सभी क्रियाएँ पूर्ववत् करें - यह व्रत प्रतिमा की विधि है। सामायिक प्रतिमा : तृतीय सामायिक-प्रतिमा की विधि में तीन मास तक दोनों समय सामायिक करते हैं। शेष नंदी, व्रत, नियम आदि की विधि एवं प्रतिज्ञा-पाठ (दण्डक) के उच्चारण की विधि पूर्ववत् ही है, यही सामायिक-प्रतिमा की विधि है। पौषध-प्रतिमा : चतुर्थ पौषधप्रतिमा की विधि इस प्रकार से है - इसमें चार मास तक अष्टमी, चतुर्दशी आदि पर्व-तिथियों में चतुर्विध आहार का त्याग करके तथा शरीर-सत्कार, मैथुन-कर्म एवं व्यापार आदि का निषेध कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001690
Book TitleJain Gruhastha ki Shodashsanskar Vidhi
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2005
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Culture, & Vidhi
File Size12 MB
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