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षोडश संस्कार
आचार दिनकर - 91 आने वाली बाधाओं को दूर कर एवं अतिचारों का सेवन न करते हुए यथाशक्ति व्रत को ग्रहण करने का और प्रदक्षिणा देने का उपदेश दें।"
उस दिन श्रावक एकासना, आयम्बिल आदि व्रत करे। साधुओं को आहार, वस्त्र, पुस्तक तथा रहने की जगह का दान करे। मण्डली-पूजा करे। चतुर्विध संघ का स्वधर्मी वात्सल्य करे, अर्थात् संघ को भोजन प्रदान करे और संघ-पूजा करे। यह व्रतारोपण संस्कार में सम्यक्त्व-सामायिकआरोपण की विधि है।
देशविरति-सामायिक-आरोपण की विधि का वर्णन इस प्रकार है - सम्यक्त्व सामायिक आरोपण के तुरन्त बाद अर्थात् उसी समय या व्यक्ति की भावना के अनुरूप कुछ दिन, मास, वर्ष आदि व्यतीत होने पर देशविरति-सामायिक का आरोपण किया जाता है। उसमें नंदी, चैत्यवंदन, कायोत्सर्ग, वासक्षेप करना खमासमणा देना आदि सब विधि पूर्ववत् ही हैं, किन्तु सभी जगह सम्यक्त्व-सामायिक के स्थान पर देशविरति- सामायिक शब्द का ग्रहण करें, अर्थात् बोलें। फिर उसी प्रकार प्रक्रिया करके पुनः दण्डक का उच्चारण करते हुए दूसरी नंदी-विधि के व्रतोच्चारण-काल में तीन बार नमस्कार-मंत्र का पाठ करने के बाद हाथ में परिग्रह-परिमाण हेतु टिप्पणक, अर्थात् लेखपुस्तिका को ग्रहण किए हुए श्रावक से गुरू देशविरति-सामायिक-दण्डक का उच्चारण कराएं। वह इस प्रकार है -
"हे भगवन् ! आज मैं आपके समक्ष स्थूल प्राणातिपात विरमण का व्रत (संकल्प) लेता हूँ। मैं निरपराध द्वीन्द्रिय आदि जीव-निकाय के निग्रह से विरत होने की प्रतिज्ञा करता हूँ। जीवन पर्यन्त दो करण एवं तीन योग से अर्थात् मन, वचन, काया इन तीनो योगो से पाप व्यापार को न करूंगा, न कराऊंगा। हे भगवन् ! उन पापवाली प्रवृत्तियों से मैं निवृत्त होता हूँ, उसकी निंदा करता हूँ, भर्त्सना (गर्हा) करता हूँ, तथा उसके प्रति अपनी ममत्व वृत्ति का विसर्जन करता हूँ, अर्थात् उसका त्याग करता हूँ।" यह आसन तीन बार बोले। इसी प्रकार "हे भगवन् ! आज मैं आपके स्थूल मुषावाद जो जिहवाछेदन आदि निग्रह का हेतु है, कन्या संबंधी, गाय संबंधी, भूमि संबंधी, धरोहर के लेन-देन संबंधी, मिथ्यासाक्ष्य देने संबंधी - ऐसे पांच प्रकार के दाक्षिण्यादि विषयक कर्म, जो आज ग्रहण किये गये व्रत का भंग करने वाले हैं, का में प्रत्याख्यान करता हूँ । जीवन पर्यन्त दो करण एवं तीन योगों से असत्य संभाषण से विरत होने की प्रतिज्ञा करता हूँ, - शेष पूर्ववत्, इस प्रकार यह दण्डक भी तीन बार बोलें।
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