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षोडश संस्कार
आचार दिनकर - 90 निग्रह और अनुग्रह करने में तत्पर हैं, उन देवों की उपासना, पूजा आदि से मुक्ति नहीं मिलती, अर्थात उन देवों की उपासना मुक्ति को दिलाने में समर्थ नहीं है। जो देव नाटक, अट्टहास और संगीत आदि उपद्रव से आत्मस्थिति में अस्थिर बने हुए हैं, वे स्वंय के आश्रित भक्तों को कैसे शांत-पद, अर्थात् मोक्ष प्राप्त करा सकते हैं ?
महाव्रत को धारण करने वाले, धीर, भिक्षा प्राप्त करके जीवन चलाने वाले, समभाव में स्थित और धर्मोपदेश देने वाले को ही निर्ग्रन्थ कहा जाता है। भक्ष्याभक्ष्यादि सभी वस्तुओं के अभिलाषी, सभी प्रकार का भोजन करने वाले, परिग्रह से युक्त, अब्रह्मचारी और मिथ्या उपदेश देने वाले गुरू कहलाने के योग्य नहीं होते। परिग्रह और हिंसा में रत गुरू दूसरों का उद्धार कैसे कर सकते हैं ? क्योंकि जो स्वंय निर्धन है, वह दूसरों को धनवान कैसे बना सकता हैं ?
जो दुर्गति में गिरते हुए प्राणियों को बचाकर उनका रक्षण करे, उसका नाम धर्म है। संयमादि दस प्रकार का सर्वज्ञ द्वारा प्रतिपादित धर्म मोक्ष देने वाला है। पुरूष (वक्ता) के बिना वचन संभव नहीं है और कदाचित् ऐसा हो भी जाए तो भी वे वचन प्रमाण नहीं हैं, क्योंकि वचनों की प्रमाणिकता आप्त (प्रामाणिक पुरूष) के अधीन है। जो मिथ्यादृष्टि वालों द्वारा प्रतिपादित किया गया है, जो मुग्धबुद्धि वाले प्राणियों में धर्म के रूप में ख्याति को प्राप्त है तथा जो धर्म भवभ्रमण का कारण है, वह वस्तुतः धर्म नहीं है, क्योंकि वह हिंसादि दोषों से दूषित है। यदि सरागी को देव कहा जाए, अब्रह्मचारी को गुरू माना जाए और दयारहित धर्म को धर्म कहा जाय, तो यह दुःख की बात है। ऐसी स्थिति में तो देव, गुरू एवं धर्म से शून्य इस जगत् को नष्ट हुआ ही समझना चाहिए।
शम, संवेग, निर्वेद, अनुकंपा और आस्तिकता - इन पाँच लक्षणों से सम्यक्त्व को अच्छी तरह से पहचाना जा सकता है। स्थिरता, प्रभावना, भक्ति, जिनशासन में कुशलता और तीर्थ सेवा - इन पाँच गुणो से सम्यक्त्व सुशोभित हो उठता है, अतः इन्हें सम्यक्त्व का भूषण कहा गया है। शंका, आकांक्षा, विचिकित्सा, मिथ्यादृष्टि की प्रशंसा और मिथ्यादृष्टि की स्तुति - ये पांचो सम्यक्त्व को अत्यन्त दूषित करने वाले हैं - इन सबको व्याख्यायित करें। साथ ही सम्यक्त्व का पालन करने वाले श्रेणिक, संप्रति, दशार्णभद्र आदि राजाओं के चारित्र का व्याख्यान करें। संग्रहणीसूत्र में कहा गया है - "चैत्यवंदन, गुरूवंदन, गृहस्थ-धर्म के व्रतों के पालन में
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