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________________ षोडश संस्कार आचार दिनकर देश एवं कुल के आचार के अनुरूप ही करें। विवाह से पूर्व वधू एवं वर दोनो पक्ष भोजन का दान दें। उसके तुरंत बाद धूलिभक्त जन्यभक्त आदि देश कुलाचार के अनुरूप करें। फिर एक सप्ताह के पश्चात् वर-वधू का विसर्जन (विदा) करें । उसकी यह विधि है — 76 सात दिन तक विविध प्रकार की भक्ति से पूजित जमाता का पूर्ववत् अंचल - बन्धन करें । अनके वस्तुएँ प्रदान करते हुए उसी आडंबर सहित अपने घर पहुँचाएं। फिर सात रात्रि, एकमासी, छः मासी या वार्षिक महोत्सव अपने कुल संपत्ति, देश एवं आचार के अनुरूप करें। सात रात्रियों के पश्चात्, या एक मास के पश्चात् कुलाचार के अनुरूप कन्या पक्ष में मातृका - विसर्जन पूर्वोक्त रीति से करें। — — कन्या - पक्ष में गणपति, कामदेव आदि के विसर्जन की विधि तो लोक - विख्यात है । वर पक्ष में कुलकर के विसर्जन की विधि इस प्रकार हैकुलकर - स्थापना के पश्चात् प्रतिदिन कुलकर की पूजा करें। विसर्जन-काल में कुलकरों को पूजकर गृहस्थ गुरू पूर्ववत् "ऊँ अमुक कुलकराय”, इत्यादि सम्पूर्ण मंत्र को पढ़कर "पुनरागमनाय स्वाहा - इस प्रकार कहकर सभी कुलकरों को विसर्जित करें। “ऊँ आज्ञाहीनं क्रियाहीनं मंत्रहीनं च यत्कृतम्। तत्सर्वं कृपया देव क्षमस्व परमेश्वर ।" यह कुलकर - विसर्जन की विधि है । फिर मण्डली - पूजा, गुरू- पूजा, वासक्षेप आदि क्रिया सब पूर्व की भांति ही करें। साधुओं को वस्त्र, पात्र का दान करें। ज्ञान - पूजा करें। विप्रों को एवं दूसरे याचको को अपनी संपत्ति के अनुसार दान दें। अन्य देश, कुल एवं धर्म में विवाह के लग्न प्राप्त होने पर तथा वर के श्वसुर - गृह में प्रविष्ट होने पर षट् आचार किए जाते हैं । पहले आंगन में आसन का दान करें। श्वसुर कहता है "आसन ग्रहण करो" वर कहता है "मैं ग्रहण करता हूँ ।" यह कहकर आसन पर बैठता है । फिर श्वसुर वर के पैरों का प्रक्षालन करे । पश्चात् अर्ध्य का दान करे दही, चंदन, अक्षत, दूब, कुश, पुष्प, श्वेत सरसों एवं जल के द्वारा श्वसुर जमाई को अर्ध्य देता है । फिर आचमन कराए और उसके बाद गन्ध, अक्षत से पूजा एवं तिलक करने के पश्चात् मधुपर्क आहार रा। इस प्रकार आसन - प्रदान, पाद - पूजन, अर्घ्य, आचमन, गन्ध एवं मधुपर्क सहित छः आचार हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.001690
Book TitleJain Gruhastha ki Shodashsanskar Vidhi
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2005
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Culture, & Vidhi
File Size12 MB
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