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षोडश संस्कार
आचार दिनकर - 75 इस प्रकार कहकर तीर्थोदक से कुशाग्र द्वारा वर-वधु को अभिसिंचित करे। पुनः गुरू उसी प्रकार वधू एवं वर को उठाकर मातृगृह में ले जाए। वहाँ ले जाकर वधू एवं वर से इस प्रकार कहे -"आप दोनों का विवाह-कार्य सम्पूर्ण हुआ। हे वत्स ! तुम दोनों स्नेह, भोग, आयुष्य एवं धर्म सहित होओ। दुःख-सुख में, शत्रु-मित्र में, गुण-दोष में, मन-वचन एवं काया में, आचार में तथा गुणों में सम (एकरूप) बनों।
फिर कन्या का पिता गुरू से कर-मोचन करने के लिए कहता है। गुरू इस वेदमंत्र का पाठ करे -
"ऊँ अहं जीवत्वं कर्मणा बद्धः, ज्ञानावरणेन बद्धः, दर्शनावरणेन बद्धः, वेदनीयेन बद्धः, मोहनीयेन बद्धः, आयुषा बद्धो, नाम्ना बद्धो, गोत्रेण बद्धः, अन्तरायेण बद्धः, प्रकृत्या बद्धः, स्थित्या बद्धः, रसेन बद्धः, प्रदेशेन बद्धः तदस्तु ते मोक्षो गुणस्थानारोहक्रमेण अर्ह ऊँ।"
यह वेदमंत्र पढ़कर पुनः इस प्रकार कहे - "हाथों के मुक्त होने पर भी आप दोनों का स्नेह संबंध अखण्डित रहे।" यह कहकर करमोचन करे। कन्या का पिता कर-मोचन उत्सव पर जमाई द्वारा प्रार्थित, या अपनी संपत्ति के अनुरूप बहुत सी वस्तुएँ दे। उसकी दान-विधि पूर्व में कहे गए अनुरूप ही करे। अब मातृगृह से उठकर वे दोनों पुनः वेदी गृह में आएं। फिर आसन पर बैठे हुए गृहस्थगुरू उन दोनों से इस प्रकार कहे - "पहले युगादि भगवान ने जिस विधि से विश्व के कार्यों का सम्पादन करने के लिए दो स्त्रियों से विवाह किया था, उसी विधि से यह युगल अच्छी तरह काम-भोगरूप फलवाला हो।
इस प्रकार कहकर पूर्वोक्त विधि से अंचल-मोचन करके, "हे वत्स ! तुम दोनो विषय सुख को प्राप्त करो"-ऐसा कहे। इस प्रकार गुरू की अनुज्ञा को प्राप्त कर वर-वधू अनेक विलासिनियों से घिरे हुए श्रृंगारगृह में प्रवेश करें। वहाँ पहले से स्थापित कामदेव की कुलवृद्धाओं के कथनानुसार पूजा करें। फिर वधू एवं वर दोनों साथ-साथ खीर मिश्रित अन्न का भोजन करें। इसके बाद यथाविधि सुरत का आचरण करें, अर्थात् संभोग
करें।
फिर जिस प्रकार आए थे, उसी प्रकार उत्सव सहित अपने घर जाएं। फिर वर के माता-पिता वधू एवं वर की आरती, न्यौछावर आदि मंगल-विधि को अपने देश एवं कुलाचार के अनुरूप करें। कंकण-बन्धन, कंकण-मोचन, द्यूतक्रीड़ा (चौपड़). वेणी बांधना आदि सभी कर्म भी उस
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