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________________ जैन तत्त्वमीमांसा की विकासयात्रा ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में जैन धर्म मुलत: आचार प्रधान है, उसमें तत्त्वमीमांसीय अवधाराणाओं का विकास भी आचारमीमांसा के परिप्रेक्ष्य में ही हुआ है। उसके तत्त्वमीमांसीय अवधारणाओं में मुख्यतः पंचास्तिकाय, षटद्रव्य, षट्जीवनिकाय और नव या सप्त तत्त्वों की अवधारणा प्रमुख है। परम्परा की दृष्टि से तो ये सभी अवधारणायें अपने पूर्ण रूप में सर्वज्ञ प्रणीत और सार्वकालिक हैं, किन्तु साहित्यिक साक्ष्यों की दृष्टि से विद्वानों ने कालक्रम में इनका विकास माना है। प्रस्तुत आलेख में कालक्रम में निर्मित ग्रन्थों के आधार पर इनकी विकासयात्रा को चित्रित किया गया है। अस्तिकाय की अवधारणा विश्व के मूलभूत घटकों के रूप में पंचास्तिकायों की अवधारणा जैनदर्शन की अपनी मौलिक विचारणा है। पंचास्तिकायों का उल्लेख आचारांग में अनुपलब्ध है, किन्तु ऋषिभाषित (ई.पू. चतुर्थ शती) के पार्श्व अध्ययन में पार्श्व की मान्यताओं के रूप में पंचास्तिकाय का वर्णन है। इससे फलित होता है कि यह अवधारणा कम से कम पार्श्वकालीन (ई.पू. आठवीं शती) तो है ही। महावीर की परम्परा में भगवतीसूत्र में सर्वप्रथम हमें इसका उल्लेख मिलता है। जैनदर्शन में अस्तिकाय का तात्पर्य विस्तारयुक्त अस्तित्ववान द्रव्य से है। जीव, धर्म, अधर्म, आकाश और पुद्गल इन पंचास्तिकायों में धर्म, अधर्म और आकाश को एक-एक द्रव्य और जीव तथा पुद्गल को अनेक द्रव्य माना गया है। ई. सन् की तीसरी शती से दसवीं शती के मध्य इस अवधारणा में कोई विशेष परिवर्तन नहीं देखा जाता, मात्र षद्रव्यों की अवधारणा के विकास के साथ-साथ काल को अनस्तिकाय द्रव्य के रूप में स्वीकार किया गया है। ई. सन् की तीसरी-चौथी शती तक अर्थात् तत्त्वार्थसूत्र की रचना के पूर्व यह विवाद प्रारम्भ हो गया था कि काल को स्वतन्त्र द्रव्य माना जाय या नहीं। विशेषावश्यकभाष्य के काल तक अर्थात ईसा की सातवीं शती तक काल को स्वतन्त्र द्रव्य के रूप में स्वीकार करने के सम्बन्ध में मतभेद था। कुछ जैन दार्शनिक काल को स्वतन्त्र द्रव्य मानते थे और कुछ उसे स्वतन्त्र द्रव्य नहीं मानते थे, किन्तु बाद में श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों परम्पराओं में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001689
Book TitleSagar Jain Vidya Bharti Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2006
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size12 MB
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