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________________ भगवान महावीर का जन्म स्थल : एक पुनर्विचार : ३५ में जन्म मानने पर भी यह स्पष्ट है कि महावग्ग के अनुसार वैशाली में ७७०७ राजा थे। अत: महावीर के पिता को राजा मानने में बौद्ध साहित्य से भी कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि वहां 'राजा' शब्द का अर्थ वैशाली महासंघ की संघीय सभा का सदस्य होना ही है। कुण्डग्राम की वसुकुण्ड से समानता के सम्बन्ध में डॉ. श्यामानंद प्रसाद की यह आपत्ति है कि वसुकुण्ड में केवल कुण्ड शब्द की ही समानता है, 'वसु' शब्द न तो ब्राह्मण का पर्यायवाची हो सकता है, न क्षत्रिय का। अत: उनका कहना है कि वर्तमान वसुकुण्ड को महावीर का जन्म स्थान नहीं माना जा सकता। किन्तु डॉ. प्रसाद ने मूलआगम साहित्य को शायद देखने का प्रयास नहीं किया। आचारांगसूत्र में वसुं" और वीर शब्द का प्रयोग श्रमण के अर्थ में हुआ है। मात्र यही नहीं 'वसु' शब्द का एक अर्थ जिनदेव या वीतराग भी उपलब्ध होता है। यह सम्भव है कि भगवान महावीर के संयमग्रहण करने के बाद इस क्षेत्र को क्षत्रियकुण्ड के स्थान पर वसुकुण्ड कहा जाने लगा हो। वर्तमान लछवाड़ के समीप जो ब्राह्मणकुण्ड और क्षत्रियकुण्ड की कल्पना की गई है वहां इस तरह की कोई बसाहट नहीं है। ब्राह्मणकुण्ड और क्षत्रियकुण्ड नाम तो उन्हें महावीर के जन्मस्थल मान लेने पर दिये गये हैं। इस प्रकार मेरी यह सुनिश्चित धारणा है कि लछवाड़ के समीप जमुई मण्डल के इस क्षेत्र का सम्बन्ध महावीर के साधना एवं केवलज्ञान स्थल से अवश्य रहा है। जिसे वर्तमान में लछवाड़ कहा जाता है उसका सम्बन्ध लिच्छविया से हो सकता है, किन्तु इस नाम की भी प्राचीनता कितनी है यह शोध का विषय है। डॉ. प्रसाद का यह मानना समुचित नहीं है कि वैशाली को महावीर के जन्म स्थान के रूप में मान्यता १९४८ में मिली। इसके पूर्व भी विद्वानों ने वैशाली के निकट और विदेह क्षेत्र में महावीर का जन्म स्थान होने की बात कही है। यह निश्चित है कि लगभग १५-१६वीं शती से श्वेताम्बर परम्परा में लछवाड़ के समीपवर्ती क्षेत्र को महावीर के जन्म स्थान मानने की परम्परा विकसित हुई है। भगवान महावीर ने अर्धमागधी भाषा में अपना प्रवचन दिया था इसलिये वे मगध क्षेत्र के निवासी होने चाहिए, ऐसी जो मान्यता लछवाड़ के पक्ष में दी जाती है वह भी समुचित नहीं है। यह स्मरण रखना चाहिये कि महावीर की भाषा मागधी न होकर अर्धमागधी है। यदि महावीर का जन्म और विचरण केवल मगध क्षेत्र में ही हुआ होता तो वे मागधी का ही उपयोग करते, अर्धमागधी का नहीं। अर्धमागधी स्वयं ही इस बात का प्रमाण है कि उनकी भाषा में मागधी के अतिरिक्त अन्य समीपवर्ती क्षेत्रों की भाषाओं एवं बोलियों के शब्द भी मिले हुए थे। मैं जमुई अनुमण्डल को महावीर का साधना स्थल एवं केवलज्ञानस्थल मानने में तो सहमत हूँ, किन्तु जन्मस्थल मानने में सहमत नहीं हूँ, अत: महावीर का जन्म स्थल वैशाली के समीप वर्तमान For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001689
Book TitleSagar Jain Vidya Bharti Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2006
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size12 MB
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