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________________ मूलाचार : एक अध्ययन : ११७ अध्ययन के लेखक डॉ. फूलचन्द जैन से इस सम्बन्ध में पूर्णतया सहमत हूँ कि मूलाचार के कर्ता आचार्य कुन्दकुन्द और वट्टकेर एक ही व्यक्ति नहीं हैं और आचार्य वट्टकेर ही इस ग्रन्थ के प्रणेता हैं। क्या मूलाचार संग्रह ग्रन्थ है ? क्या मुलाचार संग्रह ग्रन्थ है? यद्यपि परम्परागत रूप से यह माना जाता है कि आचार्य वट्टकेर मूलाचार के रचयिता हैं, किन्तु वृत्तिकार वसुनन्दि को छोड़कर अन्यत्र कहीं भी इस ग्रन्थ के कर्ता के रूप में वट्टकेर का उल्लेख नहीं मिलता। ग्रन्थ के आदि और अन्त में भी लेखक ने कहीं भी अपने नाम का संकेत नहीं दिया है। अत: कुछ विद्वानों की दृष्टि में यह विचार आया कि वस्तुतः मूलाचार का लेखक कोई नहीं है। इसे संग्रह ग्रन्थ मानने वालों की परम्परा में पं. परमानन्दजी, पं. नरोत्तम शास्त्री और श्वेताम्बर परम्परा के मुनि दर्शनविजयजी और पं. सुखलालजी का उल्लेख हुआ है। इनमें पं. परमानन्द जी अपनी पूर्व मान्यता का खण्डन करके इसे आचार्य वट्टकेर की मौलिक कृति मानते हैं। इस सम्बन्ध में उन्होंने अपना एक विस्तृत लेख “अनेकान्त" वर्ष १२, किरण ११ में प्रकाशित किया है। यद्यपि पं. सुखलालजी और मुनि दर्शनविजयजी इसे संग्रह ग्रन्थ मानते हैं किन्तु संग्रह ग्रन्थ मानने का आधार यह है कि इसमें आगमों, नियुक्तियों, प्रकीर्णकों से अधिकांश गाथाएं ली गई हैं। इसकी ३०० से अधिक गाथाएं उत्तराध्ययन, आवश्यकनियुक्ति, पिंडनियुक्ति, जीवसमास, महापच्चक्खाण, आउरपच्चखान और यापनीय परम्परा के ग्रन्थ भगवतीआराधना से यथावत रूप से मिलती हैं। इस प्रश्न पर हम अलग से चर्चा करेंगे कि ये गाथाएं मूलाचार के कर्ता ने इन ग्रन्थों से ली है अथवा मूलाचार से ये गाथाएं उन ग्रन्थों में गई हैं। वस्तुत: मूलाचार से इन गाथाओं का नियुक्ति आदि में जाने का प्रश्न इसलिए नहीं उठता है कि मूलाचारकार स्वयं ही "आवसय निज्जुत्तिं वोच्छामि" कहकर ही इन गाथाओं का उल्लेख करता है। अत: यह मानना कि नियुक्ति आदि के रचनाकारों ने मूलाचार से ये गाथाएं ली होंगी, कदापि सम्भव नहीं है। मात्र यही नहीं मूलाचार के पूरे के पूरे अध्याय इस बात के सूचक हैं कि वे किसी एक ग्रन्थ विशेष से संकलित हैं। उदाहरण के रूप में "आतुर प्रत्याख्यान" की ७० गाथाओं में ६० गाथाएं मूलाचार के व्रतप्रत्याख्यान में समान या अल्पाधिक अन्तर से मिलती हैं। षडावश्यक में आवश्यकनिर्यक्ति की गाथाएं हैं। पंचाचार अधिकार में उत्तराध्ययन और भगवतीआराधना की गाथाएं अधिक हैं। पिण्डविशुद्धि अधिकार में पिण्डविशुद्धि नामक श्वेताम्बर ग्रन्थ की अनेक गाथाएं मिलती हैं। उत्तराध्ययन के समाचारी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001689
Book TitleSagar Jain Vidya Bharti Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2006
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size12 MB
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