________________
११६
लिए आचार-व्यवहार का एक सच्चा एवं सुव्यवस्थित संविधान मूलाचार के रूप में लिपिबद्ध किया और मूलसंघ की अविच्छिन तथा उच्च परम्परा का साक्षात दर्शन कराने वाले उस ग्रन्थ का नाम मूलाचार रखा। डॉ. फूलचन्द 'प्रेमी' की दृष्टि से वट्टकेर और आचार्य कुन्दकुन्द दोनों ही एक ही परम्परा के पोषक हैं। अतः मूलाचार में कुन्दकुन्द के ग्रन्थों का प्रभाव उनकी दृष्टि में आश्चर्य का विषय नहीं है। वे यह भी स्पष्ट रूप से मानते हैं कि वट्टकेर कुन्दकुन्द के पश्चात्वर्ती थे। इस सम्बन्ध में मेरा उनसे मतभेद है। स्वयं मूलाचार में ही ऐसे अनेक तथ्य उपस्थित हैं, जिससे मूलाचार को कुन्दकुन्द की परम्परा का ग्रन्थ नहीं कहा जा सकता। इसपर हम आगे चर्चा करेंगे । यहाँ हमारा प्रतिपाद्य मात्र यही है कि आचार्य वट्टकेर को ही मूलाचार का प्रणेता माना जा सकता है।
मूलाचार की हस्तलिखित प्रतियों में और उसकी वृत्ति में वट्टकेर और कुन्दकुन्द दोनों के ही उल्लेख मिलने से दिगम्बर परम्परा के कुछ विद्वानों ने यह अनुमान लगा लिया कि वट्टकेर और कुन्दकुन्द एक ही व्यक्ति होंगे। यहाँ तक कि उन्होंने वट्टकेर को कुन्दकुन्द का विशेषण सिद्ध करने का भी प्रयत्न किया और 'वट्टक' का अर्थ प्रवर्तक और 'इरा' का अर्थ वाणी बता दिया । किन्तु वे अपनी इस व्याख्या के व्यामोह में यह बात भूल गये कि 'वट्टकेर' शब्द संस्कृत या प्राकृत का शब्द नहीं है। श्री आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये स्पष्ट रूप से इस प्रयत्न को अनुचित बताते हुए कहते हैं कि यह सब तर्क - कौशल और शब्दकौशल मात्र है । 'वट्टकेर' शब्द संस्कृत से निष्पन्न है या नहीं, जब इसी में संदेह है तो उसकी संस्कृत व्युत्पत्ति देना केवल आग्रह है । उन्होंने इस बात को भी स्पष्ट किया है कि 'वट्टकेर' शब्द कन्नड़ भाषा का शब्द है और यह स्थानसूचक शब्द है "वट्ट" शब्द का अर्थ पर्वत और 'केरी' शब्द का अर्थ रास्ता या गली होता है। अत: 'वट्टकेर' शब्द पर्वत के समीप तालाब से युक्त किसी स्थान या गांव का नाम हो सकता है अथवा वह किसी मोहल्ले का नाम हो सकता है। कारीकल के पद्मावती देवी के मंदिर के एक अभिलेख में "वट्टकेरी" गांव का दो बार उल्लेख आया है । यह अभिलेख शक संवत् १३९७ का है। इससे यह निश्चित हो जाता है कि वट्टकेरी नाम का कोई गांव १५वीं शताब्दी में अस्तित्ववान था, सम्भवत: मूलाचार के कर्ता इसी गांव के निवासी रहे होंगे। दक्षिण में व्यक्ति के नाम के प्रारम्भ में गांव के नाम का उल्लेख करने की परम्परा आज भी है। अत: पं. नाथूराम प्रेमी का यह अनुमान उचित ही है कि मूलाचार के कर्ता वट्टकेर अपने गांव के नाम से ही प्रसिद्ध हैं। उनका मूल नाम क्या था अब विस्मृति के गर्भ में चला गया है। निष्कर्ष रूप में मैं नाथूराम प्रेमी और मूलाचार के समीक्षात्मक
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org