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आगम ग्रन्थों अथवा नाटकों में मिलती है वह तो तीसरी शताब्दी के पूर्व कहीं उपलब्ध ही नहीं है, जबकि बौद्ध त्रिपिटक पालि भाषा में उसके पूर्व लिखे जा चुके थे। क्या कोई भी परवर्ती भाषा अपनी पूर्ववर्ती भाषा की जननी हो सकती है? क्या आदरणीय टाँटियाजी और सुदीपजी किसी प्राचीन ग्रन्थ का एक भी ऐसा प्रमाण प्रस्तुत कर सकते हैं जिसमें यह कहा गया हो कि शौरसेनी से पालि भाषा का जन्म हुआ? पुन: क्या इस बात का भी कोई प्रमाण है कि पहले बौद्धों के ग्रन्थ शौरसेनी में थे, उनको जला दिया गया और फिर उनको पालि में लिखा गया। आचार्य बुद्धघोष के प्रामाणिक कथन के आधार पर हमें यह बात स्पष्ट हो जाती है कि बुद्ध-वचन मूलत: मागधी में थे
सा मागधी मूलभाषा नरायाय आदिकप्पिका।
ब्रह्मणो च अस्सुतालापा संबुद्धा चापि भासरे।।* अत: यह कहना तो सम्भव है कि मागधी पालि भाषा की जननी है; किन्तु यह कथमपि सम्भव नहीं है कि परवर्ती शौरसेनी पूर्ववर्ती मागधी या पालि भाषा की जननी है- यह तो पौत्री को माता बनाने जैसा प्रयास है। यह बात तो बौद्ध विद्वानों ने स्वीकार की है कि जो बुद्ध-वचन पहले मागधी में थे, उन्हें पालि में रूपान्तरित किया गया; किन्तु यह तो किसी ने भी आज तक नहीं कहा कि बुद्ध-वचन पहले शौरसेनी में थे
और उन्हें जलाकर फिर पालि में लिखा गया। यदि इस सम्बन्ध में उनके पास कोई प्रमाण हो तो प्रस्तुत करें। मुझे तो ऐसा लगता है कि आदरणीय टॉटियाजी ने मात्र यह कहा होगा कि प्राकृत (मागधी) पालि भाषा की जननी है और पहले बौद्धों के ग्रन्थ प्राकृत में थे, उनको जला दिया गया और पालि भाषा में लिखा गया है। यहाँ प्राकृत के स्थान पर शौरसेनी शब्द की योजना भाई सुदीपजी ने स्वयं की है, ऐसा स्पष्ट प्रतीत हो रहा है। प्रो० टाँटियाजी जैसे बौद्ध विद्या के प्रकाण्ड विद्वान् ऐसी आधारहीन बातें कर सकते हैं--- यह विश्वसनीय नहीं लगता है। डॉ० सुदीपजी ने इसमें शब्दों की तोड़-मरोड़ की है। इसका प्रमाण यह है कि प्राकृतविद्या, जनवरी-मार्च १९९६ में उन्होंने टाँटियाजी के नाम से लिखा है कि "बौद्धों ने बाद में ... योजनापूर्वक शौरसेनी में निबद्ध बौद्ध साहित्य का मागधीकरण किया और शौरसेनी निबद्ध बौद्ध साहित्य के ग्रन्थों को अग्निसात कर दिया गया जबकि प्राकृतविद्या, जुलाई-सितम्बर १९९६ में लिखा है कि "बौद्धों के ग्रन्थ शौरसेनी में थे उनको जला दिया गया और पालि में लिखा गया।" इस प्रकार सुदीपजी टाँटियाजी के नाम से एक जगह लिखते हैं कि बौद्ध ग्रन्थों का मागधीकरण किया गया जबकि दूसरी जगह लिखते हैं कि पालि में लिखा गया- इन दोनों में सच क्या है? टाँटियाजी ने तो कोई एक ही बात कही होगी। मागधी और पालि दोनों अलग-अलग भाषाएँ हैं। सत्य तो यह है कि बौद्ध साहित्य मागधी से पालि में लिखा गया था न कि शौरसेनी से पालि में। इससे यह भी सिद्ध * Preface to R.S. Childer's A dictionary of the Pali Language.'P.xiii.
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