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विषयानुक्रमणिका
१. अर्धमागधी आगम साहित्य : कुछ सत्य और तथ्य २. जैन आगमों की मूल भाषा : अर्धमागधी या शौरसेनी ?
३. प्राकृत विद्या में प्रो० टाँटिया जी के नाम से प्रकाशित उनके व्याख्यान के विचारबिन्दुओं की समीक्षा ४. शौरसेनी प्राकृत के सम्बन्ध में प्रो० भोलाशङ्कर व्यास की स्थापनाओं की समीक्षा
४८-५६
अशोक के अभिलेखों की भाषा : मागधी या शौरसेनी
५७-६५
६.
क्या ब्राह्मी लिपि में 'न' और 'ण' के लिये एक ही आकृति थी ? ६६-७४
७. ओङ्मागधी प्राकृत : एक नया शगुफा
७५-८३
८. भारतीय दार्शनिक चिन्तन में निहित अनेकान्त
८४-१०२
९. जैन दर्शन की पर्याय की अवधारणा का समीक्षात्मक विवेचन १०. प्रवचनसारोद्धार : एक अध्ययन
१०३ - ११९ १२०-१९०
५.
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१-९
१०-३६
३७-४७
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