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________________ १२७ इस प्रकार हैं १. जिन मन्दिर के मुख्य द्वार पर आकर गृह सम्बन्धी कार्यों का निषेध करें २. फिर जिन-मन्दिर के मध्य भाग (रंग-मण्डप) में प्रवेश करते समय सावध (हिंसक) वचन-व्यापार का निषेध करें और ३. गर्भगृह में प्रवेश करने पर सभी सावन (हिंसक) कार्यों के मानसिक चिन्तन का भी निषेध करें - यह निषेधिकात्रिक है। २. जिन प्रतिमा की तीन प्रदक्षिणा करना प्रदक्षिणा त्रिक है। ३. जिन प्रतिमा को तीन बार प्रणाम करना प्रणाम त्रिक है। ४. पूजात्रिक के अन्तर्गत तीन प्रकार की पूजा का उल्लेख किया गया है१. पुष्प पूजा २. अक्षत पूजा और ३. स्तुति पूजा । ५. जिन की छद्मस्थ, कैवल्य और सिद्ध- इन तीन अवस्थाओं का चिन्तन करना त्रि-अवस्था भावना है। ६. तीन दिशाओं में न देखकर मात्र जिन-बिम्ब के सन्मुख दृष्टि रखना त्रिदिशानिरीक्षणविरति है। ७. जिस भूमि पर स्थित रहकर जिन प्रतिमा को वन्दन करना है उस स्थल का गृहस्थ द्वारा वस्त्र अञ्चल से और मुनि द्वारा रजोहरण से तीन बार प्रमार्जन करना प्रमार्जनात्रिक है। ८. शब्द, अर्थ एवं आलम्बन (प्रतिमा) ये वर्ण-त्रिक हैं। ९. मुद्रात्रिक के अन्तर्गत तीन प्रकार की मुद्राएं बतायी गई हैं १. जिनमुद्रा २. योगमुद्रा ३. मुक्ताशुक्ति मुद्रा । १०. मन, वचन और काया की प्रवृतियों का संवरण करके परमात्मा की शरण ग्रहण करना प्रणिधान त्रिक है। चैत्यवन्दनद्वार में उपरोक्त दश त्रिकों के साथ-साथ स्तुति एवं वन्दन विधि का तथा द्वादश अधिकारों का विवेचन है। अन्त में चैत्यवन्दन कब और कितनी बार करना आदि की चर्चा के साथ चैत्यवन्दन के जघन्य, मध्यम एवं उत्कृष्ट भेदों का विवेचन करते हुए यह चैत्यवन्दन द्वार समाप्त होता है। चैत्यवन्दन नामक प्रथम द्वार के पश्चात् प्रवचनसारोद्वार का दूसरा द्वार गुरुवन्दन के विधि-विधा एवं दोषों से सम्बन्धित है। प्रस्तुत कृति में गुरुवन्दन के १९२ स्थान वर्णित किये गये हैं- मुखवत्रिका, काय (शरीर) और आवश्यक क्रिया इन तीनों में प्रत्येक के पच्चीस-पच्चीस स्थान बताये गये हैं। इनके अतिरिक्त स्थान सम्बन्धी छ:, गुण सम्बन्धी छ:, वचन सम्बन्धी छ:, अधिकारी को वन्दन न करने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001688
Book TitleSagar Jain Vidya Bharti Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size11 MB
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