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७५ हैं जो उसके सम्प्रदायों के विकासक्रम और तत्कालीन सामाजिक स्थिति को समझने में अत्यन्त सहायक हैं, किन्तु इस दृष्टि से इनका अध्ययन किसने किया है? ये तो मैने कुछ संकेत सूत्र दिये हैं, अभी तो जैनविद्या के क्षेत्र में बहुत कुछ करणीय है, जिस पर न केवल विस्तृत चर्चा अपेक्षित है, अपितु उस दिशा में कुछ कदम भी उठाने होंगे, जिसके लिए शासन, समाज और विद्वानों की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है।
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