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________________ X जीवसमास उल्लेख है अप्रमत्तसंयत, अपूर्व | अप्रमत्तसंयत, अपूर्व- | उल्लेख है करण (निवृत्तिबादर) करण (निवृत्तिबादर) अनिवृत्तिकरण (अ- | अनिवृत्तिकरण (अनिवृत्तिबादर) जैसे | निवृत्तिबादर) जैसे नामों का अभाव। नामों का अभाव है। उपशम और क्षय का | उपशम और क्षपक | अलग-अलग श्रेणी- अलग-अलग श्रेणी विचार है, किन्तु ८३ का विचार है, किन्तु विचार उपस्थित। | विचार उपस्थित। गुणस्थान से उपशम | ८वें गुणस्थान से उपऔर क्षायिक श्रेणी से | शम श्रेणी और क्षपक अलग-अलग आरो- श्रेणी से अलग अलग हण होता है। ऐसा | आरोहण होता हैं। विचार नहीं है। ऐसा विचार नहीं है। पतन की अवस्था का | पतन की अवस्था का पतन आदि का मूल | इन व्याख्या ग्रन्थों में कोई चित्रण नहीं है। | कोई चित्रण नहीं है। पाठ में चित्रण नहीं | पतन आदि का | चित्रण हैं। जीवस्थान, मार्गणा- | जीवस्थान मार्गणा- | समवायांग मूलपाठ | सहसम्बन्ध की चर्चा स्थान और गुणस्थान | स्थान और गुणस्थान | में जीवस्थान और | है। के सह-सम्बन्ध की | के सह-सम्बन्धों की गुणस्थान दोनों को चर्चा का अभाव है। | कोई चर्चा नहीं है। जीवस्थान ही कहा गया है। इसमें इनके सह-सम्बन्ध की कोई चर्चा नहीं है, किन्तु जीवसमास एवं षट्खण्डागम मूल में इनके सह-सम्बन्धों की चर्चा है। सारिणी संख्या : २ - तत्त्वार्थसूत्र कसायपाइ । समवायाग/ तत्त्वार्थ की टीकाएं (तीसरी-चौथी शती) (४थी शती उत्तरार्ध)। षट्खण्डागम (लगभग छठी शती) (लगभग ५वी शती) मिथ्यात्त्व मिच्छादिट्टि मिच्छादिहि मिथ्यादृष्टि (इस सन्दर्भ में इसे | (मिथ्यादृष्टि) (मिथ्यादृष्टि) परिगणित नहीं किया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001687
Book TitleSagar Jain Vidya Bharti Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size11 MB
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