SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४ जैन, बौद्ध और हिन्दू धर्म का पारस्परिक प्रभाव प्रवर्तक धर्म निवर्तक धर्म दार्शनिक प्रदेय १. जैविक मूल्यों की प्रधानता १. आध्यात्मिक मूल्यों की प्रधानता। २. विधायक जीवन दृष्टि २. निषेधक जीवन-दृष्टि। ३. समष्टिवादी ३. व्यष्टिवादी। ४. व्यवहार में कर्म पर बल फिर ४. व्यवहार में नैष्कर्म्यता का समर्थन भी भाग्यवाद एवं नियतिवाद फिर भी दृष्टि पुरुषार्थपरक। का समर्थन ५. ईश्वरवादी ५. अनीश्वरवादी। ६. ईश्वरीय कृपा पर विश्वास ६. वैयक्तिक प्रयासों पर विश्वास, कर्मसिद्धान्त का समर्थन। ७. साधना के बाह्य साधनों पर बल ७. आन्तरिक विशुद्धता पर बल। ८. जीवन का लक्ष्य स्वर्ग/ईश्वर के ८. जीवन का मोक्ष/एवं निर्वाण की सान्निध्य की प्राप्ति प्राप्ति। सांस्कृतिक प्रदेय ९. वर्ण व्यवस्था और जातिवाद ९. जातिवाद का विरोध, वर्णका जन्मना आधार पर समर्थन व्यवस्था का केवल कर्मणा आधार पर समर्थन। १०. गृहस्थ-जीवन की प्रधानता १०. संन्यास जीवन की प्रधानता। ११. सामाजिक जीवन शैली। ११. एकाकी जीवन शैली। १२. राजतन्त्र का समर्थन १२. जनतन्त्र का समर्थन। १३. शक्तिशाली की पूजा १३. सदाचारी की पूजा। १४. विधि-विधानों एवं कर्मकाण्डों १४. ध्यान और तप की प्रधानता। की प्रधानता १५. ब्राह्मण-संस्था (पुरोहित-वर्ग) १५. श्रमण-संस्था का विकास। का विकास १६. उपासना-मूलक १६. समाधि-मूलक। प्रवर्तक धर्म में प्रारम्भ में जैविक मूल्यों की प्रधानता रही, वेदों में जैविक आवश्यकताओं की पूर्ति से सम्बन्धित प्रार्थनाओं के स्वर अधिक मुखर हुए हैं। उदाहरणार्थ - हम सौ वर्ष जीवें, हमारी सन्तान बलिष्ठ होवें, हमारी गायें अधिक दूध देवें, वनस्पति प्रचुर मात्रा में हो आदि। इसके विपरीत निवर्तक धर्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001686
Book TitleSagar Jain Vidya Bharti Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy