SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन, बौद्ध और हिन्दू धर्म का पारस्परिक प्रभाव मनुष्य देह चेतना वासना विवेक भोग विराग ( त्याग ) अभ्युदय ( प्रेय ) निःश्रेयस् स्वर्ग मोक्ष ( निर्वाण ) कर्म संन्यास प्रवृत्ति निवृत्ति प्रवर्तक धर्म निवर्तक धर्म - लौकिक शक्तियों की उपासना आत्मोपलब्धि समर्पणमूलक यज्ञमूलक चिन्तन प्रधान देहदण्डन मूलक भक्ति-मार्ग कर्म-मार्ग ज्ञान-मार्ग तप-मार्ग निवर्तक एवं प्रवर्तक धर्मों के दार्शनिक एवं सांस्कृतिक प्रदेय प्रवर्तक और निवर्तक धर्मों का यह विकास भिन्न-भिन्न मनोवैज्ञानिक आधारों पर हुआ था, अत: यह स्वाभाविक था कि उनके दार्शनिक एवं सांस्कृतिक प्रदेय भिन्न-भिन्न हों। प्रवर्तक एवं निवर्तक धर्मों के इन प्रदेयों और उनके आधार पर उनमें रही हुई पारस्परिक भित्रता को अगली सारणी से स्पष्टतया समझा जा सकता है - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001686
Book TitleSagar Jain Vidya Bharti Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy