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172 : श्रमण/अप्रैल-जून/1995
नेमिनाथ राजीमती को उपदेश देकर अपने संघ में साध्वी के रूप में दीक्षित कर देते
हैं।
उक्त घटना को कवि ने जिस विलक्षण कल्पना से प्रस्तुत किया वस्तुतः वह अनुपम है। साथ ही शान्तरस प्रधान इस गीति-काव्य में कवि ने जितनी चतुराई से श्रृंगार रस की योजना की है उससे कहीं अधिक करुण रस की योजना में कवि की काव्य-कुशलता दिखाई देती है। यही नहीं साहित्यिक दृष्टि से भी यह ग्रन्थ अपने आपमें विलक्षण है।
नेमिदूतम् की व्याख्या करके धीरेन्द्र मिश्र ने इस कृति को पाठकों के समक्ष सरल एवं सुबोध रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
पुस्तक - भगवान महावीर निर्वाण-भूमि पावा : एक विमर्श लेखक - भगवती प्रसाद खेतान, सम्पादक - डॉ० अशोक कुमार सिंह, प्रकाशक - पूज्य सोहनलाल स्मारक पार्श्वनाथ शोधपीठ (ग्र० मा० सं०
६१), वाराणसी -५, प्रथम संस्करण - १६६३ पृष्ठ - २३४, आकार – डिमाई पेपर बैक, मूल्य – ६० रुपये (मानचित्र,
मूर्ति-अभिलेख आदि के चित्रों सहित )। भगवान महावीर की निर्वाण-भूमि पावा के अन्वेषण की दिशा में जो कठिन परिश्रम श्री भगवती प्रसाद जी ने किया है वह अत्यन्त सराहनीय और स्पृहणीय है। जैन समाज गंगा के दक्षिण-पश्चिम में राजगृह के निकट स्थित पावापुरी को महावीर की निर्वाणस्थली मानता आया है पर भारतीय पाश्चात्य शोध विद्वानों का निष्कर्ष यह है कि महावीर की निर्वाणस्थली वैशाली और श्रावस्ती के मध्य गंगा के
उत्तर में गंडक के समीप कहीं थी। विद्वानों द्वारा अद्यावधि निम्न स्थलों को पावा सिद्ध करने का प्रयास किया गया है -
१. ग्राम पपतार, २. पवैया, ३. आज्ञा, ४. उस्मानपुर, ५. झरमटिया, ६. पपउर, ७. सठियाँव फाजिलनगर एवं ८. पावापुरी पडरौना। विद्वान् लेखक ने सब स्थानों के सम्बन्ध में देशी विदेशी पुरातत्वज्ञों के प्रमाणों की सबल समीक्षा की है और विस्तार से यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि पडरौना ही महावीर की निर्वाण भूमि प्राचीन पावा है। पडरौना को पावा सिद्ध करने के लिए उन्होंने पडरौना-अनुशीलन, भौगोलिक चिन्तन, पुरातत्त्विक सर्वेक्षण, पावा-गंडक सम्बन्ध, प्राग्बुद्धकालीन और बुद्धकालीन मार्ग के विवेचन से उन्होंने पडरौना की स्थिति को मजबूत करने का बहुत अच्छा प्रयत्न किया है।
विद्वान् लेखक ने अपने ग्रन्थ में पावा - सम्भावित क्षेत्रफल के सम्बन्ध में ८ परिशिष्ट भी जोड़े हैं। कुल मिलाकर यह श्री खेतानजी के दीर्घकालीन गहन अध्ययन, अनुसन्धान तथा चिन्तन का अनुकरणीय परिचायक है। यह श्री खेतानजी
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