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अञम मुखसत्तीहि वितुदन्ता विहरन्ति "न त्वं इमं धम्मविनयं आजानासि, अहं इमं धम्मविनयं आजानामि । किं त्वं इमं धम्मविनयं आजानिस्ससि ? मिच्छापटिपन्नो त्वमसि, अहमस्मि सम्मापटिपन्नो । सहितं मे, असहितं ते । पुरेवचनीयं पच्छा अवच, पच्छा-वचनीयं पुरे अवच | अधिचिणं ते विपरावत्तं । आरोपितो ते वादो । निग्गहितो त्वमसि । चर वादप्पमोक्खाय । निब्बेठेहि वा सचे पहोसी" ति । वधो येव खो मञ्ञे निगण्ठेसु नापुत्तियेसु वत्तति । ये पि निगण्ठस्स नाटपुत्तस्स सावका गिही ओदातवसना ते निगण्ठेसु नाटपुत्तियेसु निब्बिन्नरूपा विरत्तरूपा पटिवानरूपा यथा तं दुरखा धम्मविनये दुप्पवेदिते अनिय्यानिके अनुपसमसंवत्तनिके असम्मासम्बुद्धप्पवेदिते भिन्नथूपे अप्पटिसरणे ।
- दीघनिकाय, पासादिकसुत्तं, 6/1/1
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( ब )
31. देखें
32. देखें -- मुनि कल्याणविजय, वीरनिर्वाण संवत् और जैनकाल गणना
33
(31).
267 भगवान महावीर की निर्वाण तिथि पर पुनर्विचार
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(ब)
Majumdar, R.C. Ancient India, Published by Motilal Banarasidas, Banaras, 1952, p. 108
डॉ. रमाशंकर त्रिपाठी प्राचीन भारत का इतिहास, मोतीलाल बनारसीदास, 1968, पृ. 139
34. तित्थोगाली पइन्नयं, 78 [ पइण्णया सुत्ताई, महावीर विद्यालय, बम्बई 1
35. ज्ञातव्य है कि लगभग सभी श्वेताम्बर पट्टावलियाँ इसीकाल का उल्लेख करती हैं। देखें-- विविध गच्छीय पट्टावली संग्रह (प्रथम भाग ) मुनि जिनविजय सिंघी जैन शास्त्र शिक्षापीठ, भारतीय विद्याभवन, बम्बई, 1961
36. ज्ञातव्य है कि हिमवत स्थविरावली की मूलप्रति उसके गुजराती अनुवाद के पश्चात् उपलब्ध नहीं हो पा रही है। पं. हीरालाल हंसराज जामनगर का उसका गुजराती अनुवाद ही इसका एक मात्र आधार है। इसमें महावीर के निर्वाण के पश्चात् साठ वर्ष कुणिक और उदायी का राज्यकाल दिखाकर उसके पश्चात् नन्दों के 94 वर्ष दिखाकर वीरनिर्वाण 155 में चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्योरोहण दिखा गया है। देखें वीरनिर्वाण सम्वत् और जैन काल गणना मुनि कल्याणविजय, पृ. 178
37. परिशिष्ट, हेमचन्द्र, 8 / 339
38. देखें -
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(अ) पट्टावली पराग संग्रह मुनि कल्याणविजयजी (ब) विविधगच्छीय पट्टावली संग्रह
प्रथम भाग सम्पादक -- जिनविजय, सिंघी जैन शास्त्र शिक्षा पीइ, भारतीय विद्याभवन, बम्बई
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61
39. धवला टीका समन्वित षट्खण्डागम, खण्ड, पुस्तक
40.
(अ) मुनि कल्याणविजय पट्टावलीपरागसंग्रह, क. वि. शास्त्रसंग्रह समिति जालौर, 1966, पृ. 52 मुनिजी द्वारा किये गये अन्य परिवर्तनों के लिये देखें-पृ. 49-50
मुनि कल्याणविजय, वीरनिर्वाण, संवत् और जैन कालगणना, पृ. 137
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