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________________ डॉ. सागरमल जैन मन्दिरों में और राजस्थान के तारंगा और राणकपुर के श्वे. जैन मन्दिरों में ऐसे अंकन पाये जाते हैं । जहाँ तक काम सम्बन्धी अश्लील अंकनों का प्रश्न है इस सम्बन्ध में जैन आचार्यों ने युग की माँग के साथ सामंजस्य स्थापित करके उसे स्वीकृति प्रदान कर दी थी। जिनमन्दिर की बाह्य भित्तियों पर शालभंजिकाओं ( अप्सराओं) के और व्यालों के उत्कीर्ण होने की सूचना जैनागम राजप्रश्नीय में भी उपलब्ध है।' इसका तात्पर्य है कि खजुराहो में उत्कीर्ण अप्सरा मूर्तियाँ जैन आगम सम्मत हैं। आचार्य जिनसेन ने इसके एक शताब्दी पूर्व ही रति और कामदेव की मूर्तियों के अंकन एवं मन्दिर की बाह्य भित्तियों को आकर्षक बनाने की स्वीकृति दे दी थी। उन्होंने कहा था कि मन्दिर की बाह्य भित्तियों को वेश्या के समान होना चाहिए। जिस प्रकार वेश्या में लोगों को आकर्षित करने की सामर्थ्य होती है, उसी प्रकार मन्दिरों की बाह्य भित्तियों में भी जन-साधारण को अपनी ओर आकर्षित करने की सामर्थ्य होना चाहिये । जन- साधारण को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ऐसे अंकनों की स्वीकृति उनके युगबोध और सामंजस्य की दृष्टि का ही परिणाम था । यद्यपि यह भी सत्य है कि अश्लील कामुक अंकनों के प्रति जैनों का रूख अनुदार ही रहा है। यही कारण है कि ऐसे कुछ फलकों को नष्ट करने का प्रयत्न भी किया गया है। 175 जैनाचार्यों की सहिष्णु और समन्वयवादी दृष्टि का दूसरा उदाहरण खजुराहो के जैन मन्दिरों में हिन्दू देवमण्डल के अनेक देवी-देवताओं का अंकन है। इन मन्दिरों में राम, कृष्ण, बलराम, विष्णु तथा सरस्वती, लक्ष्मी, काली, महाकाली, ज्वालामालिनी आदि देवियाँ, अष्ट दिक्पाल, नवग्रह आदि को प्रचुरता से उत्कीर्ण किया गया है । यद्यपि यह ज्ञातव्य है कि इनमें से अनेकों को खजुराहो के मन्दिरों के निर्माण के शताब्दियों पूर्व ही जैन देव मण्डल का अंग बना लिया गया था। राम, लक्ष्मण, कृष्ण, बलराम आदि वासुदेव और बलदेव के रूप में शलाका पुरुष तथा सरस्वती, काली, महाकाली आदि 16 विद्या- देवियों के रूप में अथवा जिनों की यक्षियों के रूप में मान्य हो चुकी थी, इसी प्रकार नवग्रह, अष्टदिक्पाल, इन्द्र आदि भी जैनों के देव मण्डल में प्रतिष्ठित हो चुके थे और इनकी पूजा और उपासना भी होने लगी थी। फिर भी जैनाचार्यों की विशिष्टता यह रही कि उन्होंने वीतराग की श्रेष्ठता और गरिमा को यथावत सुरक्षित रखा और इन्हें जिनशासन के सहायक देवी-देवता के रूप में ही स्वीकार किया । खजुराहो के मन्दिर एवं मूर्तियों के सम्बन्ध में यदि हम तुलनात्मक दृष्टि से विचार करें तो मेरी जानकारी के अनुसार यहाँ के किसी भी हिन्दू मन्दिर में जिन प्रतिमा का कोई भी अंकन उपलब्ध नहीं होता है, जबकि जैन मन्दिरों में न केवल उन देवी-देवताओं का, जो जैन देवमण्डल के सदस्य मान लिये गये हैं, अपितु इसके अतिरिक्त भी हिन्दू देवी-देवताओं के अंकन हैं यह जैनाचार्यों की उदार दृष्टि का परिचायक है। जबकि हिन्दू मन्दिरों में दशावतार के कुछ फलकों में युद्ध के अंकन के अतिरिक्त जैन और बौद्ध देव मण्डल अथवा जिन और बुद्ध के अंकन का अभाव किसी अन्य स्थिति का सूचक है। मैं विद्वानों का ध्यान इस ओर अवश्य आकर्षित करना चाहूँगा कि वे यह देखें कि यह समन्वय या सहिष्णुता की बात खजुराहो के मन्दिर और मूर्तिकला की दृष्टि से एक पक्षीय है या उभयपक्षीय है। —— Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001684
Book TitleSagar Jain Vidya Bharti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size19 MB
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