________________
सुवोधिनी टीका ।
ऊपर की हुई शङ्काका खुलासा उत्तर--- केवलमंशानामिह नाप्युत्पादो व्ययोपि न श्रौव्यम् । नाप्यंशिनस्त्रयं स्यात् किमुतांशेनांऽशिनो हि तत्रितयम् ॥ २२८ ॥ अर्थ — केवल अंशोंके ही उत्पाद, व्यय, धौव्य नहीं होते हैं और न केवल अंशीके ही तीनों होते हैं । किन्तु अशी के अंश रूपसे उत्पादादिक तीनों होते हैं ।
शङ्काकार
अध्याय । ]
ननु चोत्पादध्वंसौ स्यातामन्वर्थतोऽथ वाङ्मात्रात् । दृष्टवत्वादिह ध्रुवत्वमपि चैकस्य कथमिति चेत् ॥ २२९ ॥
अर्थ – एक पदार्थ के उत्पाद और ध्वंस भले ही हों; परन्तु उसी पदार्थ के धौव्य भी होता है, यह बात वचन मात्र है, और प्रत्यक्ष वाधित है। एक ही पदार्थ के उत्पाद व्यय और धौन्य ये तीनों किस प्रकार हो सक्ते हैं ?
[ ७१
उत्तर
सत्यं भवति विरुद्धं क्षणभेदो यदि भवेत्त्रयाणां हि ।
अथवा स्वयं सदेव हि नयत्वत्पद्यते स्वयं सदिति ॥ २३० ॥ अर्थ- शङ्काकारका उपर्युक्त कहना तभी ठीक हो सक्ता है अथवा उत्पाद, व्यय, धौव्य, इन तीनोंका एक पदार्थ तभी विरोध आता है जब कि इन तीनों का क्षण भेद हो । अथवा यदि स्वयं सत् ही नष्ट होता हो, और सत् ही उत्पन्न होता हो तब भी इन तीनोमें विरोध आसक्ता है ।
कापि कुतश्चित किञ्चित् कस्यापि कथञ्चनापि तन्न स्यात् । तत्साधकप्रमाणाभावादिह सोप्यदृष्टान्तात् ॥ २३१ ॥
अर्थ - परन्तु ऐसा कहीं किसी कारण से किसीके किसी प्रकार किञ्चिन्मात्र भी नहीं होता है । उत्पाद भिन्न समय में होता हो, व्यय भिन्न समय में होता हो, और धौन्य भिन्न समय में होता हो इस प्रकार तीनोंके क्षण भेदको सिद्ध करनेवाला न तो कोई प्रमाण ही है, और न कोई उसका साधक दृष्टान्त ही है ।
शङ्काकार-
ननु च स्वावसरे किल सर्गः सर्गेकलक्षणत्वात् स्यात् । संहारः स्वावसरे स्यादिति संहारलक्षणत्वाद्वा ॥ २३२ ॥ धौव्यं चात्मावसरे भवति धौव्यैकलक्षणान्तस्य । च| एवं क्षणभेदः स्वाद्वीजाङ्करपादपस्त्ववत्त्वितिचेत् ॥ २३३ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org