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________________ पञ्चाध्यायी । प्रौव्यका स्वरूप--- २०३ ॥ toiसतः कथंचित् पर्यायार्थाच्च केवलं न सतः । उत्पादव्ययवदिदं तच्चैकांशं न सर्वदेशं स्यात् ॥ अर्थ — धौन्य भी कथंचित् पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षासे पदार्थ के होता है। पर्यायहटिको छोड़कर केवल पदार्थका धौव्य नहीं होता है, किन्तु उत्पाद और व्ययकी तरह वह भी एक अंश स्वरूप है । सर्वाश रूप नहीं है । भावार्थ - जिस प्रकार उत्पाद और व्यय द्रव्यदृष्टिसे नहीं होते हैं उस प्रकार व्य भी द्रव्य दृष्टसे नहीं होता है किन्तु वह भी पर्याय दृष्टिसे होता है, इसीलिये उसको भी वस्तुका एक अंशरूप कह गया है । यदि तीनोंको द्रव्यदृष्टिसे ही माना जाय तो वस्तु सर्वथा अनित्य और सर्वथा नित्य ठहरेगी । ६४ ] श्रव्यका ही स्वरूपान्तर- तद्भावाव्ययमिति वा धौव्यं तत्रापि सम्यगयमर्थः । 66 यः पूर्व परिणामो भवति स पश्चात् स एव परिणामः ॥ २०४॥ अर्थ ——-धौन्यका लक्षण तद्भावाव्ययम् यह भी कहा गया है, उसका भी यही उत्तम अर्थ है कि वस्तुके भावका नाश नहीं होता, अर्थात् जो वस्तुका पहले परिणाम है, वही परिणाम पीछे भी होता है । " [ प्रथम दृष्टान्त--- पुष्पस्य यथा गन्धः परिणामः परिणमँश्च गन्धगुणः । नापरिणामी गन्धो न च निर्गन्धाडि गन्धवत्पुष्पम् ॥ २०५ ॥ अर्थ - जिस प्रकार पुष्पका गन्ध परिणाम है, और गन्ध गुण भी परिणामी है, वह भी प्रतिक्षण परिणमन करता है, वह अपरिणामी नहीं है, परन्तु ऐसा नहीं है कि पहले पुप्प गन्ध रहित हो और पीछे गन्ध सहित हुआ हो । भावार्थ- गन्धगुण परिणमन शील होनेपर भी वह पुप्पमें सदा पाया जाता है, उसका कभी पुष्पमें अभाव नहीं है, बस इसीका नाम धौय है, जो गन्धपरिणाम पहले था वही पीछे रहता है । Jain Education International नित्य और अनित्यका विचार तत्रानित्यनिदानं ध्वंसोत्यादद्वयं सतस्तस्य । नित्यनिदानं ध्रुवमिति ततत्रयमप्यंशभेदः स्यात् ॥ २०६ ॥ अर्थ — उन तीनोंमें उत्पाद और व्यय ये दो तो उस परिणामी द्रव्यमें अनित्यके कारण हैं और ध्रुव ( धौव्य) नित्यताका कारण है, ये तीनों ही एक २ अंशरूप से भिन्न हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001681
Book TitlePanchadhyayi Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakashan Karyalay Indore
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size18 MB
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