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पञ्चाध्यायी।
[ प्रथम
शाखादिक भिन्न कोई पदार्थ नहीं है । इसी प्रकार देश, देशांश, गुण, गुणांशका समूह ही द्रव्य है । द्रव्यसे भिन्न न तो देशादिक ही हैं, और देशादिसे भिन्न न द्रव्य ही है। .
कारक और आधाराधेयकी अभिन्नता__ यद्यपि भिन्नोऽभिन्नो दृष्टान्तः कारकश्च भवतीह ।
ग्राह्यास्तथाप्यभिन्नो साध्ये चास्मिन् गुणात्मके द्रव्ये ॥ ७८ ॥
अर्थ--यद्यपि दृष्टान्त और कारक भिन्न भी होते हैं और अभिन्न भी होते हैं। यहां गुण समुदायरूप द्रव्यकी सिद्धिमें अभिन्न दृष्टान्त और अभिन्न ही कारक ग्रहण करना चाहिये । खुलासा आगे किया जाता है।
दोनोंकी भिन्नतामें दृष्टान्तभिन्नोप्यथ दृष्टान्तो भित्तौ चित्रं यथा दधीह घटे ।
भिन्नः कारक इति वा कश्चिद्धनवान् धनस्य योगेन ॥ ७९ ॥ ___अर्थ-आधाराधेयकी भिन्नताका दृष्टान्त इस प्रकार है कि जैसे भित्तिमें चित्र होता. है अथवा घडेमें दही रक्खा है। भित्ति भिन्न पदार्थ है और उसपर खिचा हुआ चित्र दूसरा पदार्थ है । इसी प्रकार घट दूसरा पदार्थ है और उसमें रक्खा हुआ दही दूसरा पदार्थ है, इसलिये ये दोनों ही दृष्टान्त आधाराधेयकी भिन्नतामें है। भिन्न कारकका दृष्टान्त इस प्रकार है-जैसे कोई आदमी धनके निमित्तसे धनवाला कहलाता है। यहांपर धन दूसरा पदार्थ है और पुरुष दूसरा पदार्थ है। धन और पुरुषका स्व-स्वामि सम्बन्ध कहलाता है। यह स्व-स्वामि सम्बन्ध भिन्नताका है।
भावार्थ-जिस प्रकार धनवान् पुरुष, यह भिन्नता स्व स्वामि सम्बन्ध है उस प्रकार गुण-पर्यायवान् द्रव्य, यह सम्बन्ध नहीं है अथवा जैसा आधाराधेय भाव भित्ति और चित्रमें है पैता गुण द्रव्यमें नहीं है किन्तु कारक और आधाराधेय दोनों ही अभिन्न हैं।
दोनोंकी अभिन्नतामें दृष्टान्त---- दृष्टान्तश्चाभिन्नो वृक्षे शाखा यथा गृहे स्तम्भः ।
अपि चाभिन्नः कारक इति वृक्षोऽयं यथा हि शाखावान् ॥८॥
अर्थ-आधार-आधेयकी अभिन्नतामें दृष्टान्त इस प्रकार है, जैसे वृक्षों शाखा' अथवा घरमें खम्भा। कारककी अभिन्नतामें दृष्टान्त इस प्रकार है जैसे-यह वृक्ष शाखावाला है।
भावार्थ-यहांपर वृक्ष और शाखा तथा घर और खंभा दोनों ही अभिन्नताके दृष्टान्त है। वृक्षसे शाग्वा जुदा पदार्थ नहीं है। और घरसे खंभा जुदा पदार्थ नहीं है। इसी प्रकार वृक्ष शाखावान् है" यह स्वस्वामि सम्बन्ध भी अभिन्नताका है। इन्ही अभिन्न आधार-आधेय और अभिन्नकारकके समान गुण, पर्याय, और द्रव्यको समझना चाहिये।
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