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अध्याये । ]
सुबोधिनी टीका ।
t २१
माने जावें, तो ऐसी अवस्थामें दोनोंकी सत्ता समान होगी। सत्ताकी समानतामें ' यह गुण है और यह गुणी है,' यह कैसे जाना जा सक्ता है ?
भावार्थ- जब गुण समुदायको द्रव्य कहा जाता है तब तो समुदायको गुणी और समुदायको गुण कहते हैं परन्तु गुण और गुणीको भिन्न माननेपर दोनों ही समान होंगे, उस समानता किसको गुण कहा जाय और किसको गुणी कहा जाय ? गुण गुणीका अन्तर ही नहीं प्रतीत होगा ।
सारांश
तस्मादिदमनवद्यं देशविशेषास्तु निर्विशेषास्ते ।
गुणसंज्ञकाः कथञ्चित्परणतिरूपाः पुनः क्षणं यावत् ॥ ४५ ॥ अर्थ - इसलिये यह बात निर्दोष सिद्ध है कि देश-विशेष ही गुण कहलाते हैं। गुणों में गुण नहीं रहते हैं । वे गुण प्रतिक्षण परिणमनशील हैं परन्तु सर्वथा विनाशी नहीं हैं ।
प्रश्न
एकत्वं गुणगुणिनोः साध्यं हेतोस्तयोरनन्यत्वात् ।
तदपि द्वैतमिव स्यात् किं तत्र निवन्धनं त्वितिचेत् ॥ ४६ ॥ अर्थ - गुण, गुणी दोनों ही एक हैं क्योंकि वे दोंनों ही भिन्न सत्तावाले नहीं हैं । यहांपर अभिन्न सत्ता रूप हेतुसे गुण, गुणीमें एकपना सिद्ध किया जाता है, फिर भी क्या कारण कि अखण्ड पिण्ड होनेपर भी द्रव्यमें द्वैतभावसा प्रतीत होता है ?
उत्तर
यत्किञ्चिदस्ति वस्तु स्वतः स्वभावे स्थितं स्वभावश्च । अविनाभावी नियमाद्विवक्षितो भेदकर्ता स्यात् ॥ ४७ ॥ अर्थ – जो कोई भी वस्तु है वह अपने स्वभाव ( गुण-स्वरूप ) में स्थित है और वह स्वभाव भी निश्चयसे उस स्वभावी ( वस्तु ) से अविनाभावी - अभिन्न है परन्तु विवक्षा वश भिन्न समझा जाता है ।
भावार्थ - यद्यपि स्वभाव, स्वभावी, दोनों ही अभिन्न हैं तथापि अपेक्षा कथनसे स्वभाव और स्वभावीमें भेद समझा जाता हैं, वास्तवमें भेद नहीं है ।
गुणके पर्यायवाची शब्द -
शक्तिर्लक्ष्मविशेषो धर्मो रूपं गुणः स्वभावश्च ।
प्रकृतिः शीले चाकृतिरेकार्थवाचका अमी शब्दाः ॥ ४८ ॥ अर्थ - शक्ति, लक्ष्म, विशेष, धर्म, रूप, गुण, स्वभाव, प्रकृति, शील, आकृति ये सभी शब्द एक अर्थके कहनेवाले हैं। सभी नाम गुणके हैं।
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