________________
अध्याय ।
सुबोधिनी टीका।
wwwvvv
.
द्रव्य और गुण---- अथ चैव ते प्रदेशाः सविशेषा द्रव्यसंज्ञया भणिताः। ___ अपि च विशेषाः सर्वे गुणसंज्ञास्ते भवन्ति यावन्तः ॥ ३८ ॥
अर्थ--ऊपर जिन देशांशों (प्रदेशों ) का वर्णन किया गया है । वे देशांश गुण सहित हैं । गुण सहित उन्ही देशांशोंकी द्रव्य संज्ञा है। उन देशांशोंमें रहनेवाले जो विशेष हैं उन्हींकी गुण संज्ञा है।
भावार्थ-द्रव्य अनन्त गुणोंका समूह है इसलिये जितने भी द्रव्यके प्रदेश हैं सबमें अनंत गुणोंका अंश है उन गुणों सहित जो प्रदेश हैं उन्हींकी मिलकर द्रव्य संज्ञा हैं, गुणोंकी विशेष संज्ञा है।
___ गुण, गुणीसे जुदा नहीं हैतेषामात्मा देशो नहि ते देशात्पृथक्त्वसत्ताकाः। नहि देशे हि विशेषाः किन्तु विशेषैश्च तादृशो देशः ॥ ३९ ॥
अर्थ-उन गुणोंका समूह ही देश ( अखण्ड-द्रव्य ) है । वे गुण देशसे भिन्न अपनी सत्ता नहीं रखते हैं और ऐसा भी नहीं कह सकते कि देशमें गुण ( विशेष) रहते हैं किन्तु उन विशेषों ( गुणों ) के मेलसे ही वह देश कहलाता है। . भावार्थ-नैयायिक दर्शनवाले गुणोंकी सत्ता भिन्न मानते हैं और द्रव्यकी सत्ता भिन्न मानते हैं, द्रव्यको गुणोंका आधार बतलाते हैं परन्तु जैन सिद्धान्त ऐसा नहीं मानता किन्तु उन गुणोंके समूहको ही देश मानता है और उन गुणोंकी द्रव्यसे भिन्न सत्ता भी नहीं स्वीकार करता है । ऐसा भी नहीं है कि द्रव्य आधार है और गुण आधेय रूपसे द्रव्यमें रहते हैं, किन्तु उन गुणोंके समुदायसे ही वह पिण्ड द्रव्य संज्ञा पाता है।
अत्रापि च संदृष्टिः शुक्लादीनामियं तनुस्तन्तुः ।
नहि तन्तौ शुक्लाद्याः किन्तु सिताद्यैश्च तादृशस्तन्तुः ॥४०॥ __ 'अर्थ-गुण और गुणीमें अभेद है, इसी विषय में तन्तु ( डोरे ) का दृष्टान्त है। शुक्ल गुण आदिका शरीर ही तन्तु है । शुक्लादि गुणोंको छोड़कर और कोई वस्तु तंतु नहीं है और न ऐसा ही कहा जा सक्ता है कि तन्तुमें शुक्लादिक गुण रहते हैं, किन्तु शुक्लादि गुणोंके एकत्रित होनेसे ही तन्तु बना है।
भावार्थ-शुक्ल आदि गुणोंका समूह ही डोरा कहलाता है। जिस प्रकार डोरा और सफेदी अभिन्न है उसी प्रकार द्रव्य और गुण भी अभिन्न हैं । जिस प्रकार डोरा, सफेदी आदिसे पृथक् वस्तु नहीं है उसी प्रकार द्रव्य भी गुणोंसे पृथक् चीन नहीं है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org