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पञ्चाध्यायी।
[ प्रथम
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हो जाते; और न अंशोंका नाश और उत्पत्ति ही होती है। किन्तु व्यक्तता और अव्यक्तताकी अपेक्षासे जो तरतम भेद होता है उसीके जानने के लिये केवल अंशोंकी कल्पना की जाती है । यह अंश कल्पना सर्वज्ञज्ञानगम्य है । द्रव्यकी तरह गुणोंमें भी यही बात समझ लेनी चाहिये कि प्रत्येक गुणके जितने अंश है उतनी ही उस गुणकी पर्यायें हो सक्ती हैं। दूसरे शब्दों में यह कहना चाहिये कि उन त्रिकालवर्ती पर्यायोंका समूह ही गुण कहलाता है ।
द्रव्य चार विभागों में बँटा हुआ है, यह बात भी उपर्युक्त कथनसे स्पष्ट हो जाती है । वे चार विभाग इस प्रकार हैं-देश, देशांश, गुण, गुणांश । अनन्त गुणोंके अखण्ड पिण्ड (द्रय )को देश कहते हैं । उस अखण्ड पिण्ड रूप देशके प्रदेशोंकी अपेक्षासे जो अंश कल्पना की जाती है, उसको देशांश कहते हैं। द्रव्यमें रहनेवाले गुणोंको गुण कहते हैं । और उन गुणोंके अंशोंको गुणांश कहते हैं । बस प्रत्येक द्रव्यका स्वरूप इन्ही चार वातों में पर्याप्त है । इन चार वातोंको छोड़कर द्रव्य और कोई चीन नहीं है । ये चारों वाते प्रत्येक वस्तुमें अलग२ हैं। दूसरे शब्दोंमें यह कहना चाहिये कि इन्हीं चारों वातोंसे एक द्रव्य दूसरे द्रव्यसे भिन्न निश्चित किया जाता है । इन्हीं चारोंको स्वचतुष्टय कहते हैं । स्वनाम अपनेका है, चतुष्टय नाम चारका है, अर्थात् हर एक वस्तुकी अपनी २ चार चार वातें भिन्न भिन्न हैं । स्वचतुष्टयसे अपने द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावका ग्रहण होता है । हर एक वस्तुका द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव भिन्न २ हैं । अनन्त गुणोंका अखण्ड पिण्ड रूप जो देश है उसीको द्रव्य कहते हैं। उस देशके जो प्रदेशोंकी अपेक्षासे भेद हैं उसीको स्वक्षेत्र कहते हैं अर्थात् वस्तुका वही क्षेत्र है जितने प्रदेशोंमें वह विभक्त है। वस्तुमें रहनेवाले गुणोंको ही स्वभाव कहते हैं और उन गुणोंकी काल क्रमसे होनेवाली पर्यायको ही अर्थात् गुणोंके अंशको ही स्वकाल कहते है । इसलिये देश, देशांश, गुण, गुणांशका दूसरा नाम ही वस्तुका द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव है । खुलासा इस प्रकार है-वस्तुका व द्रप, उसके अनन्त गुणसमुदायरूप पिण्डको छोड़कर और कोई नहीं है । वस्तुका क्षेत्र भी उसके प्रदेश ही हैं, न कि वह जहां रक्खी है। जहां वह वस्तु रक्खी है वह स्वक्षेत्र नहीं है किन्तु परक्षेत्र है । इसी प्रकार स्वकाल भी उस वस्तुकी काल क्रमसे होनेवाली पर्याय (गुणांश) है, न कि जिस काल में वह परिणमन करती है वह काल, वह काल तो पर द्रय है । और स्वभाव उस वस्तुके गुण ही हैं।
___ दृष्टान्तके लिये सोंठ, मिरच, पीपल आदि एक लक्ष औषधियों का चूर्ण पर्याप्त है एक २ तोला एक लाख औषधियोंको लेकर उन्हें कूट पीसकर नीबूके रसके साथ घोंटकर सबका एक बड़ा गोला बना डालें। उस गोले मेंसे एक २ रत्ती प्रमाण गोलियाँ बना डालें । बस इन्हींसे स्वचतुष्टय घटित कर लेना चाहिये । एक लाख समान २ औषधियों का जो गोला है उसे तो स्वद्रव्य अर्थात् देशके स्थानमें समझना चाहिये । उस गोलेकी जो एक २ रत्ती प्रमाण.
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