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________________ १२६ पञ्चाध्यायी। [ ময়ম अनित्य होती हैं । इसलिये विशेषकी अपेक्षासे वस्तु अनित्य है, सामान्यकी अपेक्षा वह नित्य भी है । प्रमाणकी अपेक्षा वह नित्यानित्यात्मक है । भाव अभाव पक्षअभिनवभाव परिणतेयोंयं वस्तुन्यपूर्वसमयोयः । इति यो वदति स कश्चित् पर्यायार्थिकनयेष्वभावनयः ॥७६४॥ अर्थ-~-नवीन परिणाम धारण करनेसे वस्तुमें नवीन ही भाव होता है, ऐमा जो कोई कहता है वह पर्यायार्थिक नयोंमें अभाव नय है । परिणममानेपि तथा भूतैर्भावैविनश्यमानेपि। नायमपूर्वो भावः पर्यायार्थिकविशिष्टभावनयः ॥७६५॥ अर्थ----वस्तुके परिणमन करनेपर भी तथा उसके पूर्व भावोंकेविनष्ट होनेपर भी वस्तुमें नवीन भाव नहीं होता है किन्तु जैसेका तैसा ही रहता है, वह पर्यायार्थिक भाव नय है। शुद्धद्रव्यादेशादभिनवभावो न सर्वतो वस्तुनि ।। नाप्यनभिनवश्च यतः स्यादभूतपूर्वो न भूतपूर्वो वा ॥७६६॥ _अर्थ----शुद्ध द्रव्यार्थिक नयसे वस्तुमें सर्वथा नवीन भाव भी नहीं होता है, तथा प्राचीन भाव भी नहीं रहता है, क्योंकि वस्तु न तो अभूतपूर्व है और न भूतपूर्व है। अर्थात् शुद्ध द्रव्यार्थिक दृष्टिसे वस्तु न नवीन है और न पुरानी है किन्तु जैसी है वैसी ही है। अभिनवभावैर्यदिदं परिणममान प्रतिक्षणं यावत् । असदुत्पन्नं नहि तत्सन्नष्ट वा न प्रमाणमतमेतत् ॥७६७॥ अर्थ-जो सत् प्रतिक्षण नवीन २ भावोंसे परिणमन करता है वह न तो असत् उत्पन्न होता है और न सत् विनष्ट ही होता है यही प्रमाण पक्ष है । इत्यादि यथासम्भवमुक्तमिवानुक्तमपि च नयचक्रम् । भोज्यं यथागमादिह प्रत्येकमनेकभावयुतम् ॥७६८॥ अर्थ.----.इत्यादि अनेक धर्मोको धारण करनेवाला और भी नयसमूह जो यहां पर नहीं कहा गया है, उसे भी कहे हुए के तुल्य ही समझना चाहिये, तथा हर एक नयको आगमके अनुसार यथायोग्य (जहां जैसी अपेक्षा हो) घटाना चाहिये । ccha समाप्त। Nagar Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001681
Book TitlePanchadhyayi Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakashan Karyalay Indore
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size18 MB
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