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________________ सुबोधिनी टीका। [ १९९ अरत्युपयोगि ज्ञानं सामान्यविशेषयोः समं सम्यक् । x आदर्शस्थानीयात् तस्य प्रतिबिम्बमानतोऽन्यस्य ॥६७३॥ अर्थ-एक साथ सामान्यविशेषका उपयोगात्मक ज्ञान भले प्रकार हो सक्ता है। जैसे-दर्पणसे उसमें पड़नेवाला प्रतिबिम्ब यद्यपि (कथंचित् ) भिन्न है । तथापि उस प्रतिबिम्बका और दर्पणका एक साथ बोध होता है । भावार्थ—जो अनेक प्रकारका चित्र ज्ञान होता है वह भी अनेकोंका युगपत् ही होता है इसलिये युगपत् सामान्य विशेषका उपयोगी ज्ञान होता है यह सर्व सम्मत है। शंकाकार-- ननु चैवं नययुग्मं व्यस्तं नय एव न प्रमाणं स्यात् । तदिह समस्तं योगात् प्रमाणमिति केवलं न नयः ॥ ६७४॥ अथ—दोनों ही नय जब भिन्न २ प्रयुक्त किये जाते हैं तब तो वे नय ही हैं, प्रमाण नहीं हैं और वे ही दोनों नय जब मिलाकर एक साथ प्रयोगमें लाये जाते हैं तब वह केवल प्रमाण कहलाता है, नय नहीं कहलाता है ? भावार्थ-या तो नयकी सिद्धि होगी या प्रमाणकी सिद्धि होगी। नय प्रमाण दोनोंकी सिद्धि नहीं होसक्ती है ? प्रमाण नयोंसे भिन्न है-- तन्न यतो नययोगादतिरिक्तरसान्तरं प्रमाणमिदम् । लक्षणविषयोदाहृतिहेतुफलाख्यादिभेदभिन्नत्वात् ॥ ३७५॥ अर्थ—ऊपर जो शंका की गई है वह ठीक नहीं है, क्योंकि नयोंके योगसे प्रमाण भिन्न ही वस्तु है, प्रमाणका लक्षण, विषय, उदाहरण हेतु, फल, नाम, भेद, आदि खरूप नयोंसे जुदा ही है। उसीको नीचे स्पष्ट करते हैं। ___ तत्रोक्तं लक्षणमिह सर्वस्वग्राहकं प्रमाणमिति। विषयो वस्तुसमस्तं निरंशदेशादिभूरुदाहरणम् ॥३७६ ॥ अर्थ--प्रमाणका लक्षण सम्पूर्णपदार्थको ग्रहण करना । प्रमाणका विषय-समस्त वस्तु निरंशदेशादिक पृथ्वी उसका उदाहरण है। तथा-- हेतुस्तस्वबुभुत्सोः संदिग्धस्याथवा च बालस्य। सार्थमनेकं द्रव्यं हस्तामलकवदवेतुकामाय ।। ६७७॥ अर्थ-तत्त्वके जाननेकी इच्छा रखनेवाला जो कोई संदिग्ध पुरुष अथवा मूर्ख पुरुष है उसकी एक साथ अनेक द्रव्यको हाथमें रक्खे हुए आमलेके समान जाननेकी इच्छाका होना ही प्रमाणका कारण है। ४ यह श्लोकका अर्घ भाग छपी हुई प्रतिमें नहीं है किन्तु लिखी हुईसे लिया गय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001681
Book TitlePanchadhyayi Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakashan Karyalay Indore
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size18 MB
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