SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नमः सिद्धेभ्यः । अथ-सुबोधिनीहिन्दी भाषा-टीका सहित। #EEEEEEEEJ पञ्चाध्यायी। वीर प्रार्थनासुध्यानमें लवलीन हो, जब घातिया चारों हने सर्वज्ञबोध, विरागताको, पालिया तब आपने उपदेश दे हितकर, अनेकों भय, निन सम कर लिये रवि ज्ञान किरण प्रकाश डालो, वीर ! मेरे भी हिये ॥ १ ॥ जिनवाणी नमस्कारस्याद्वाद, नय, षद्रव्य, गुण, पर्याय, और प्रमाणका जड-कर्म चेतन बन्धका, अरु कर्मके अवसानका कहकर स्वरूप यथार्थ, जगका जो किया उपकार है उसके लिये, जिनवाणि ! तुमको वन्दना शतवार है ॥ २ ॥ __गुरु स्तवनधरि कवच संयम, उग्र ध्यान कठोर असि निज हाथ ले व्रत, समिति, गुप्ति, सुधर्म, भावन, वीर भट भी साथ ले परचक्र राग द्वेष हनि, स्वातन्त्र्य-निधि पाते हुए . वे स्व-पर तारक, गुरु, तपोनिधि, मुक्ति पथ जाते हुए ॥ ३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001681
Book TitlePanchadhyayi Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakashan Karyalay Indore
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy