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अध्याय ।
सुबोधिनी टीका ।
[ १५१
प्रमाण नयक स्वरूप कहने की प्रतिज्ञाउक्तं सदिति यथा स्यादेकमनेकं सुसिद्ध दृष्टान्तात् ।
अधुना तबाङ्मानं प्रमाणनयलक्षणं वक्ष्ये ॥ ५०३ ॥ अर्थ-सत्-पदार्थ कथंचित् एक है, कथंचित् वह अनेक है, यह बात सुप्रसिद्ध दृष्टान्तों द्वारा सिद्ध की जा चुकी है। अब वचनमात्र प्रमाण नयका लक्षण कहा जाता है ।
नयोंका स्वरूपइत्युक्तलक्षणेऽस्मिन् विरुद्धधर्मयात्मके तत्त्वे । तत्राप्यन्यतरस्य स्यादिह धर्मस्य वाचकश्च नयः ॥ ५०४॥
अर्थ-पदार्थ विरुद्ध दो धर्म स्वरूप है, ऐसा उसका लक्षण ऊपर कहा जा चुका है । उन दोनों विरोधी धर्मोमेंसे किसी एक धर्मका कहनेवाला नय कहलाता है। भावार्थ-पदार्थ उभय धर्मात्मक है, और उस उभय धर्मात्मक पदार्थको विषय करनेवाला तथा कहनेवाला प्रमाण है। उन धर्मोमेंसे एक धर्मको कहनेवाला नय है अर्थात् विवक्षित अंशका प्रतिपादक नय है ।
नयोंके भेदद्रव्यनयो भावनयः स्यादिति भेदाद्विधा च सोपि यथा । पौगलिकः किल शब्दो द्रव्यं भावश्च चिदिति जीवगुणः ।५०५
अर्थ-वह नय भी द्रव्यनय और भावनयके भेदसे दो प्रकार है । x पौद्गलिक शब्द द्रव्यनय कहलाता है तथा जीवका चेतना गुण भावनय कहलाता है।
भावार्थ-किसीअपेक्षासे जो वचन बोला जाता है उसे शब्दनय कहते हैं । जैसे किसीने घीकी अपेक्षा रख कर यह वाक्य कहा कि घीका घड़ा लाओ, यह वाक्य असद्भूत व्यवहार नयकी अपेक्षासे कहा गया है। इसलिये यह वाक्य भी नय कहलाता है । अर्थात् पदार्थके एक अंशका प्रतिपादक वाक्य द्रव्य नय कहलाता है, और पदार्थके एक अंशको विषय करनेवाला ज्ञान भाव नय कहलाता है।
अथवायदि वा ज्ञानविकल्पो नयो विकल्पोस्ति सोप्यपरमार्थः। , नेयतो ज्ञानं गुण इति शुद्धं ज्ञेयं च किन्तु तद्योगात् ॥५०६ ॥
x शब्द भाषा वर्गवासे बनता है इसलिये पौगलिक होता ही है उसका पौद्गलिक विशेषण देना स्थूलतासे निरर्थक ही प्रतीत होता है । परन्तु निरर्थक नहीं है । शब्दके दो भेद है (१) द्रव्य शब्द (२) भावशब्द । द्रव्य शब्द पोद्गलिक है । मावशब्द ज्ञानात्मक है। इस भेदको दिखलाने के लिये ही शब्दका यहांपर पौगलिक विशेषण दिया है । जो वचन बोला जाता है वह सब पौद्रालिक ही है ।
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