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________________ १३० ] पञ्चाध्यायी। [ प्रथम अर्थगुण पर्यायवाला द्रव्य है, अर्थात् गुणपर्याय ही द्रव्यका शरीर है, गुण पर्याय स्वरूप ही द्रव्य है, इसलिये सत् एक है। ऐसा नहीं है कि उसके कुछ अंश तो गुणरूप हों, कुछ पर्यायरूप हों । दृष्टान्त रूपादितन्तुमानिह यथा पटः स्यात्स्वयं हि तद्द्वैतम् । नहि किञ्चिद्रूपमयं तन्तुमयं स्यात्तदंशगर्भाशैः ॥ ४३९ ॥ अर्थ-रूपादि विशिष्ट तन्तुवाला पट कहलाता है, इस कथनकी अपेक्षासे वह स्वयं द्वैतभाव धारण करता है, परन्तु ऐसा नहीं है कि पटमें कुछ अंश तो रूपमय हों, और कुछ तन्तुमय हो । किन्तु रूप तन्तु पट तीनों एक ही पदार्थ है । केवल विवक्षासे उसमें द्वैतभाव है । न पुनगरसवदिदं नानासन्वैक सत्त्वसामान्यम् । सम्मिलितावस्थायामपि घृतरूपं च जलमयं किश्चित् ॥ ४४० ॥ अर्थ - सत् में जो एकत्व है, वह गोरसके समान अनेक सत्ताओंके सम्मेलनसे एक सामान्य सत्त्वरूप नहीं है । जैसे- गोरस (दुग्धादि की मिली हुई अवस्था में कुछ घृतभाग है, और कुछ जलभाग है, परन्तु सम्मेलन होनेके कारण उन्हें एक ही गोरससे पुकारते हैं, वैसे सत् में एकत्व नहीं है । भावार्थ जैसे गोरसमें कई पदार्थोंकी भिन्न २ सत्ता है परन्तु मिलापके कारण एक गोरसकी ही सत्ता कही जाती है । वैसे सत् एक नहीं कहा जाता है। किन्तु एक सत्ता होने से वह एक कहा जाता है । I अपि यदशक्यविवेचनमिह न स्याद्वा प्रयोजकं यस्मात् । क्वचिदश्मनि तद्भावान्माभूत्कनकोपलद्वयाद्वैतम् ॥ ४४१ ॥ अर्थ - अथवा ऐसा भी नहीं कहा जासक्ता कि यद्यपि सत् में भिन्न २ सत्तायें हैं परन्तु उनका भिन्न २ विवेचन नहीं किया जासक्ता है इसलिये सत्को एक अथवा एक सत्तावाला कह दिया जाता है । जैसे क स्वर्ण पाषाणमें स्वर्ण और पाषाण दो पदार्थ हैं परन्तु उनका भिन्न २ विवेचन अशव्य है इसलिये उसे एक ही पत्थरके नामसे पुकारा जाता है । ऐसा कहनेसे नेस प्रकार का स्वर्ण पाषाण में द्वैतभाव है उसी प्रकार सत्में भी द्वैतजिस प्रकार भिन्न २ दो पदार्थ हैं उस प्रकार सत्में सत्तावाला एक ही है । सारांश- भाव सिद्ध हो, प नहीं है । स वास्त देवप्रिया खण्डवस्तुस्वम् | प्रकृतं यथा सदकं द्रव्येणाखण्डितं मतं तावत् ॥ ४४२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001681
Book TitlePanchadhyayi Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakashan Karyalay Indore
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size18 MB
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