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पञ्चाध्यायी।
[प्रथम
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हेतुका आश्रय ही असिद्ध होता है वहां आश्रयासिद्ध दोष आता है । जैसे-"गगनारविन्द सुरभि अरविन्दत्वात् सरोजारविन्दवत्" अर्थात् यदि कोई पुरुष ऐसा अनुमान बनावे कि आका शका कमल सुगंधित है, क्योंकि वह कमल है, जो जो कमल होता है वह वह सुगंधित होता है जैसे तालावका कमल, तालावमें कमल होता है वह सुगंधित ही होता है। इसी प्रकार जो आकाशमें कमल है वह भी कमल है इसलिये वह भी सुगंधित है। यहां पर आकाशका कमल यह पक्ष* है, सुगंधिवाला है, यह साध्य हैx क्योंकि वह कमल है यह हेतु+ है। यह अनुमान नहीं है किन्तु अनुमानाभास है । क्योंकि हेतुका आश्रय ही असिद्ध है। आकाशमें कमलकी यदि संभावना हो तब तो वहां सुगंधि भी रह सक्ती है। परन्तु आकाशमें तो कमलका होना ही असंभव है फिर उसकी सुगन्धिका होना तो नितान्त ही असंभव है। जब कमलरूप हेतु ही आकाशमें नहीं रहता है तब सुगन्धिरूप साध्य भी वहां कैसे रह सक्ता है ? इसलिये जिस प्रकार यहांपर आश्रय न होनेसे आश्रयासिद्ध दोष आता है उसी प्रकार गौके दाये बाँये सींगोंके दृष्टान्तमें भी आश्रयासिद्ध दोष आता है । क्योंकि सींगोंका दृष्टान्त दियागया है, सींग विना आश्रयके रह नहीं सक्ते हैं अथवा जिस प्रकार दोनों सीगोंका आश्रय गौ है उसी प्रकार यदि सत् और परिणामका आश्रयभूत कोई पदार्थ हो, तब तो दोनोंकी एक कालमें सत्ता मानी जा सक्ती है, परन्तु सत् परिणामसे अतिरिक्त उनका आश्रय. ही असिद्ध है, क्योंकि सत् परिणामके सिवाय पदार्थका स्वरूप ही कुछ नहीं है । सत् परिणाम उभय धर्मात्मक ही तो पदार्थ है । इसलिये गौके सीगोंका दृष्टांत ठीक नहीं है। * भावार्थ-दूसरी बात इस दृष्टान्तकी विरुद्धतामें यह भी है कि जिस प्रकार गौके सींग किसी काल विशेषसे उत्पन्न होते हैं उस प्रकार सत् परिणाम किसी काल विशेषसे उत्पन्न नहीं होते हैं । न तो सत् परिणामसे भिन्न इनका कोई आधार ही है, और न इनकी किसी कालविशेषसे उत्पत्ति ही है।
* जिस आधार पर साध्यसिद्ध किया जाय उस आधारको पक्ष कहते हैं। उसका दूसरा नाम आश्रय भी है। ___जो सिद्ध किया जाय उसे साध्य कहते हैं।
+ जिसके द्वारा साध्य सिद्ध किया जाय उसे हेतु कहते हैं।
* यहांपर अनुप्रान वाक्य यह है-रपदागिदान कारणको सत्परिणामी, समकालावि. भर्भावको, एकपदार्थोप दान कारणकत्वात् , सव्येतरगोविषाण इत् । जिस प्रकार गौके सींगोंका उपादान कारण गौ है इसलिये दोनों सींगों की एक साथ उत्पत्ति होती है, उसी प्रकार सत् परिणामका मी एक पदार्थ उपादान कारण है इसलिये वे भी समान कालमें उत्पन्न होते हैं। यह अनुमान ठोक नही है। यहांपर आभयाखिद्र दोष अाता है।
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