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________________ १०८ ] पञ्चाध्यायी । अथ सिद्धत्वात्तन्निष्पत्तिर्द्वयोः पृथक्त्वेपि । सर्वस्य सर्वयोगात् सर्वः सर्वोपि दुर्निवारः स्यात् ॥ ३७० ॥ चेदन्वयादभिन्नं धर्मद्वैतं किलेति नयपक्षः । रूपपटादिवदिति किं किमथ क्षारद्रव्यवच्चेति ॥ ३७१ ॥ क्षारद्रव्यवदिदं चेदनुपादेयं मिथोनपेक्षत्वात् । वर्णततेर विशेष न्यायान्न नयाः प्रमाणं वा ॥ ३७२ ॥ रूपपटादिवदिति चेत्सत्यं प्रकृतस्य सानुकूलत्वात् । एकं नामद्वयाङ्कमिति पक्षस्य स्वयं विपक्षत्वात् ॥ ३७३ ॥ अर्थ -- अग्नि और वैश्वानरके समान सत् और परिणाम ये दो नाम ही माने जाय तो भी इष्टसिद्धि नहीं होती है। क्योंकि वे साध्यसे विरुद्ध पड़ते हैं । दृष्टान्त भी साध्य शून्य है, अर्थात् हमारा साध्य - परस्पर सापेक्ष उभय धर्मात्मक पदार्थरूप है उस उभय धर्मात्मक पदार्थरूप साध्यकी सिद्धि दो नामोंसे नहीं होती है । तथा अग्नि और वैश्वानर ये दो नाम भिन्न रहकर एक अग्निके वाचक हैं, इसलिये यह दृष्टांत भी साध्य रहित है । यदि नाम इयका दृष्टान्त साध्य विरुद्ध नहीं है तो हम पूंछते हैं कि नाम दो धर्मोकी उपेक्षा रखते हैं अथवा अपेक्षा रखते हैं ? यदि पहला पक्ष स्वीकार किया जाय, अर्थात् दो नाम दो धर्मोकी अपेक्षा नहीं रखते केवल एक पदार्थके दो नाम हैं तो धर्मोका अभाव ही हुआ जाता है, धर्मोके अभाव में धर्मी भी नहीं ठहर सक्ता है, फिर तो विचार करना ही व्यर्थ है । यदि द्वितीय पक्ष स्वीकार किया जाय अर्थात् दो नाम दो धर्मोकी उपेक्षा नहीं करते किन्तु अपेक्षा रखते हैं तो वे दोनों धर्म द्रव्यसे भिन्न हैं अथवा अभिन्न हैं ? यदि द्रव्यसे भिन्न हैं तो भी वे नहीं समान हैं, फिर भी कुछ विशेषता नहीं हुई, जो धर्म द्रव्यसे सर्वथा जुदे हैं तो वे उसके नहीं कहे जा सकते हैं, इसलिये उनका विचार करना ही निरर्थक है । यदि यह कहा जाय कि दोनों धर्म द्रव्यसे यद्यपि जुदे हैं क्योंकि वे युतसिद्ध हैं । तथापि उन धर्मोंका द्रव्यके साथ सम्बन्ध मान लेनेसे कोई दोष नहीं आता है ऐसा कहना भी ठीक नहीं है, यदि भिन्न पदार्थोंका इस प्रकार सम्बन्ध मानलिया जाय तो सब पदार्थोंका सब पदार्थों के साथ सम्बन्ध हो जायगा ऐसी अवस्थामें सभी पदार्थ संकर हो जायगे अर्थात् जैसे सर्वथा भिन्न धर्मोका एक द्रव्यके साथ सम्बन्ध माना जाता है वैसे उनका हरएक द्रव्यके साथ सम्बन्ध होसक्ता है, क्योंकि जब वे धर्म द्रव्यसे सर्वथा जुदे ही हैं तो जैसे उनका एक द्रव्यसे सम्बन्ध होसक्ता है वैसे सब द्रव्योंसे होक्ता है फिर सभी द्रव्य परस्पर मिल जायगे । द्रव्योंमें परस्पर भेद ही [ प्रथम * जो एक दूसरेसे आश्रित न होकर स्वतन्त्र हो उन्हें युतासद्ध कहते हैं । जैस चौकी treat हुई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001681
Book TitlePanchadhyayi Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakashan Karyalay Indore
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size18 MB
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